Friday, January 10, 2025
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*राष्ट्रपति चुनाव-2022 : भाजपा (NDA) की ‘आदिवासी महिला’ उम्मीदवार और मायावती का ‘आदिवासी प्रेम’*

नई दिल्ली

आगामी जुलाई माह में भारत के राष्ट्रपति पद का चुनाव होना है। इसी के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल रहीं श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को NDA गठबंधन का उम्मीदवार घोषित किया है; जो कि आदिवासी समुदाय से आती हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के UPA गठबंधन ने पूर्व भाजपाई रहे तथा वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री यशवंत सिन्हा को अपनी ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है; जोकि कायस्थ जाति से आते हैं।

राष्ट्रपति उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही देश में एक राजनीतिक विमर्श शुरू हो गया है। इस विमर्श में सबसे ज्यादा चर्चा NDA उम्मीदवार श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को लेकर है। कांग्रेसी पक्ष कह रहा है कि NDA गठबंधन द्वारा आदिवासी महिला श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करना एक ‘राजनीतिक स्टंट’ है, तो वहीं भाजपाई पक्ष कह रहा है कि हमने ‘सामाजिक न्याय’ को ध्यान में रखकर समाज के सबसे निचले तबके की महिला को देश के सर्वोच्च पद (राष्ट्रपति पद) के लिए उम्मीदवार बनाया है। इसी बीच मायावती जी ने भी प्रेसवार्ता के माध्यम से ‘आदिवासी प्रेम’ प्रकट करते हुए NDA उम्मीदवार श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को अपना समर्थन देने का एलान कर दिया है।

बीजू जनता दल और YSRcp जैसी क्षेत्रीय पार्टियां पहले से ही भाजपा के साथ हैं, ऐसे में आदिवासी महिला के नाम पर मायावती जी का समर्थन श्रीमती द्रोपदी मुर्मू की जीत पक्की कर देता है।

अगर अभी तक हुए 14 राष्ट्रपतियों की बात की जाए, तो पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और के.आर. नारायणन को छोड़कर बाकी राष्ट्रपति केंद्र में सत्ताधारी पार्टी के रबर स्टैंप ही साबित हुए हैं। इसलिए यह कहना कि श्रीमती द्रोपदी मुर्मू भाजपा की रबर स्टैंप साबित होंगी, कोई नई बात नहीं है।

अब अगर कांग्रेस एंड कंपनी (UPA) की बात की जाए तो उसके पास भी अवसर था कि वह भी एससी/एसटी, ओबीसी अथवा अल्पसंख्यक वर्ग में से किसी व्यक्ति को अपनी ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। यह भी कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, क्योंकि कांग्रेस एंड कंपनी का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वह एससी/एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक वर्ग के तथाकथित नेताओं को सिर्फ ‘कोल्हू के बैल’ की तरह इस्तेमाल कर ब्राह्मण, क्षत्रिय, बनिया नेतृत्व को ही आगे ले जाने की पक्षधर रही है। इसलिए दिन प्रतिदिन रसातल में जा रही कांग्रेस एंड कंपनी की नैय्या में आज थोड़ा और बड़ा छेद करने की जरूरत है, ताकि पूरी तरह से इसका विसर्जन हो सके।

*खैर, आज मुख्य प्रश्न यह है कि एससी, एसटी, ओबीसी को जानवर से भी बदतर हालात में रखने वाले ब्राह्मणवादी लोगों और नेताओं का इन वर्गों के प्रति पिछले कुछ दशकों से यह अप्रत्याशित प्रेम कैसे उमड़ पड़ा?*

दरअसल बात यह है कि जबसे मान्यवर कांशीराम साहब ने एससी/एसटी, ओबीसी और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों में सामाजिक-राजनीति जागृति पैदा कर उन्हें राष्ट्र स्तर पर राजनीतिक रूप से लामबंद करने का प्रयास शुरू किया, तो ब्राह्मणवादी लोगों को आभास हो गया कि यदि कांशीराम का यह प्रयास कामयाब होता है, तो एससी/एसटी, ओबीसी वर्ग इस देश का शासक वर्ग होगा और अल्पसंख्यक ब्राह्मण-बनिया वर्ग शासित होगा। ऐसी परिस्थिति में ब्राह्मण-बनियों की धार्मिक, राजनीतिक दुकानें बंद हो जाएंगी।

बस फिर क्या था, सदियों पूर्व से कायम अपनी प्रभुता खो देने के डर से ब्राह्मणों ने षड्यंत्र रचा और मान्यवर कांशीराम साहब को रास्ते से हटा कर उनकी तथाकथित एकमात्र शिष्या मायावती को अपने जेब में रख लिया; तबसे मायावती मान्यवर कांशीराम साहब के ‘बहुजन मिशन’ और उनके लाखों मिशनरी सिपाहियों को दरकिनार कर तथाकथित *’दलित-ब्राह्मण’ गठजोड़* में लग गईं और संघी ब्राह्मण मान्यवर के *’बहुजन फार्मूले’* को चोरी कर एससी, एससी, ओबीसी वर्ग को भाजपा के पक्ष में लामबंद करने में लग गए।

*परिणामस्वरूप, मान्यवर कांशीराम साहब जिस बहुजन फार्मूले का इस्तेमाल कर, बहुजन समाज को शासक बनाकर उसका सामाजिक, आर्थिक उत्थान करना चाहते थे, उसी ‘बहुजन फार्मूले’ को इस्तेमाल कर भारतीय जनता पार्टी के रूप में ब्राह्मण-बनिया आज देश और प्रदेशों की सत्ता में काबिज़ हो बहुजन समाज का सामाजिक, आर्थिक पतन कर रहे हैं।*

जहां तक मायावती जी का प्रश्न है, तो अपने निजी स्वार्थ, राजनीतिक अदूरदर्शिता और धन लोलुपता की वजह से आज उनकी हालत ‘मदारी की बंदरिया’ जैसी हो गयी है। मसलन केंद्र में सत्ताधारी दल जैसे ही अपना ‘सीबीआई’ रूपी डमरू बजाएगा, मायावती जी तुरंत उसकी ताल पर क़दमताल करना शुरू कर देंगी।

यही वजह है कि लंबे समय से ‘दलित-ब्राह्मण’ गठजोड़ के नाम पर आदिवासी, ओबीसी, धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग को दरकिनार करती आ रहीं मायावती जी का आज अचानक से *’आदिवासी प्रेम’* उमड़ पड़ा और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्हें भाजपा (NDA) की उम्मीदवार श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा करनी पड़ गई।

*आपकी जानकारी के लिए बात दूँ कि श्रीमती द्रोपदी मुर्मू एकलौती आदिवासी नहीं हैं, जोकि राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाई गई हैं। इससे पहले सन 2012 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में भी NDA की तरफ से एक प्रसिद्ध आदिवासी नेता श्री पी.ए. संगमा जी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया था, जोकि श्रीमती द्रोपदी मुर्मू से कहीं ज़्यादा योग्य, राजनीतिक तजुर्बेकार और आठ बार लोकसभा स्पीकर रह चुके थे। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस (UPA) की सत्ता थी और UPA की तरफ़ से एक बंगाली ब्राह्मण श्री प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे, तब मायावती जी का ‘आदिवासी प्रेम’ कहां गायब हो गया था? उस समय भी मायावती जी को कांग्रेसी केंद्र सरकार की ताल पर क़दमताल करते हुए श्री प्रणब मुखर्जी (ब्राह्मण) को बिना शर्त समर्थन देना पड़ा था।* इसलिए मायावती जी के तथाकथित ‘आदिवासी प्रेम’ की असलियत बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह आज सबको पता है।

*अब प्रश्न पैदा होता है कि भाजपा (NDA) द्वारा एक आदिवासी महिला को ही राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार क्यों बनाया गया?* तो इसके पीछे कई कारण हैं। एक जो तात्कालिक कारण है, वह यह कि वर्ष 2022-23 में 11 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके ठीक बाद 2024 में लोकसभा चुनाव शुरू हो जाएंगे। जिन राज्यों में 2022-23 में चुनाव होने हैं उनमें से अधिकांश राज्यों में अच्छी खासी आबादी आदिवासी समुदाय की है। _(जैसे, मिजोरम में 95%; मेघालय में 87%; नागालैंड में 87%; त्रिपुरा में 32%; छत्तीसगढ़ में 32%; मध्यप्रदेश में 22%; गुजरात में 15%; राजस्थान में 14%; तेलंगाना में 10%; कर्नाटक में 7%; और हिमाचल प्रदेश में 6% आदिवासी आबादी है।)_ पिछले कुछ महीनों में ‘तीन कृषि कानून बिल’, ‘ओबीसी की जातीय जनगणना’ और ‘आरक्षण’ आदि मुद्दों की वजह से भाजपा का कोर वोट (यानी ओबीसी वोट) भाजपा से छिटकना शुरू हो चुका है।

भाजपा ने दलित के नाम पर श्री रामनाथ कोविंद जी को राष्ट्रपति बनाकर 2019 के लोकसभा चुनाव में गैर-चमार दलित जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की थी, लेकिन भाजपा के शासनकाल में पिछले कई वर्षों से दलितों पर बढ़ रहे सामाजिक अत्याचार और बेरोजगारी की वजह से इस बार भाजपा का दलित कार्ड नहीं चलने वाला। ऐसी परिस्थिति में भाजपा को अगर इन राज्यों में चुनाव जीतकर आगामी लोकसभा चुनाव-2024 के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाना है, तो भाजपा से छिटक चुके ओबीसी वोटों की भरपाई के लिए आदिवासी वोटरों को अपने पाले में लेना अति आवश्यक हो गया है।

चूंकि ब्राह्मण-बनिया ताकतों द्वारा आदिवासी समुदाय के जीवनोपयोगी तथा मूलाधार रहे जल, जंगल, जमीन को उससे छीनकर उसे इतना प्रताणित किया गया है कि सामाजिक-राजनीतिक तौर पर वह किसी गैर-आदिवासी व्यक्ति अथवा नेता के झांसे में आसानी से नहीं आता।

पिछले कई वर्षों से भाजपा और आरएसएस स्थानीय चमचेनुमा आदिवासी नेताओं के सहारे आदिवासी इलाकों में अपनी जड़ें जमाने में प्रयासरत हैं, लेकिन अभी तक उन्हें मनचाही सफलता हाथ नहीं लगी; बल्कि इसके उलट आदिवासी समुदाय के कुछ बुद्धिजीवी नेता आदिवासी को गैर-हिन्दू मानकर अपने लिए एक अलग धार्मिक कोड (सरना धर्म) की मांग करते आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ आदिवासियों के ऊपर नक्सलवादी होने का झूठा आरोप लगाकर लाखों क्रांतिकारी आदिवासियों को जेलों में कैद करने का षड्यंत्र किया जाता रहा है।

इन तमाम कारणों के मद्देनजर भाजपा के लिए आदिवासियों को राष्ट्र स्टार पर अपने पक्ष में लामबंद करना हमेशा से मुश्किल भरा काम रहा है, इसलिए भाजपा, आरएसएस ने *कांटे से कांटा निकालने* की अपनी पुरानी नीति का अनुसरण करते हुए *हिंदुत्व की पाठशाला में वेल ट्रेंड श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को अपनी ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है।* ताकि वह देश में प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति (देश का सर्वोच्च पदाधिकारी) बनाने का तमगा अपने नाम करके आदिवासियों का विश्वास और वोट प्राप्त करने में कामयाब हो सके।

अब जबकि उम्मीदवार घोषित होने के अगले ही दिन श्रीमती द्रोपदी मुर्मू एक स्थानीय शिव मंदिर में जाकर तथा झाडू-पोछा लगाकर अपनी हिंदुत्व-भक्ति पहले ही साबित कर चुकीं हैं। इसलिए अंत में मैं बस इतना ही लिखकर अपनी लेखनी को विराम देता हूँ कि इस परिस्थिति में आदिवासी समुदाय को ज्यादा भावुक और खुश होने की जरूरत नहीं, बल्कि सतर्क व सावधान रहकर आगामी घटनाक्रमों में पैनी नज़र रखने की जरूरत है।

_कांशीराम मिशन में.

*अशोक कुमार साकेत*
राष्ट्रीय प्रवक्ता
बहुजन द्रविड पार्टी, नई दिल्ली
9717366805

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