कुदरत का कानुंन कोईभी बदल नहीं सकता ना तोड सकता है एक जान अपने मां के कोकसे ही जनंम लेता है और मां के कोकसे हडई, मांस गोस चमडी खून या रक्त हर जान मे होता हैं इस्लीये जनमसे ही महार,चांभार,मेहतर, मातंग याने मां के कोक से अंग लेके बाहर दुनिया मे जो जनंम लेता वो व्यक्ती इन चार चीज केले बाहर आता है जो एकही व्यक्ती चार जात खुदमे केले आता इस्लीये भारत मे जो जाती बताई गई ये सिर्फ चार जाती का एक ही व्यक्ती होता हैं क्योके हर व्यक्ती को गोस् मांस चंमडी हाड होता हैं और अगर ये जनंम लेनेवाला व्यक्ती नीच अपवित्र होता अच्छुत होता है तो धर्तीपर जनंम लेनेवाला हर एक व्यक्ती सबसे पाहिले आच्छुत है अब इसके बाद सनातन वैदिक विचार रखनेवाले अपने काल्पनिक तर्क निराधार खुदको ब्राम्हण कहैकर सब मे ऊंचा खुदको समजता तोये उसकी म्हूजोरी है बेवकुफी बकवास बेतूकी बात है कयोके ब्रा ,का मतलब गंदा गाली देनेवाला बकवास करणेवाला म्हूका म्हूजोर होता है इस्लीए धर्तिपर सबसे गंदा नीच अगर अच्छुत कोई है तो खुदही खुदको उंचा स्मझनेवाला ब्राम्हण है जो अपणिही मां के कोकसे चमडी हाड मांस रक्त लेके बाहर दुनिया में आता हैं तो सबसे पहिले चंभार मातंग महार मेहतर खुद रह्यता है और जैसा बाहर आता तो म्हूसे चिल्लाता ब्रा याने गाली गंदी देताईसलीये वो अच्छुत अपवित्र बन जाता अपने म्हूसे दूनियामे ब्रा कहैनेवाला ब्राम्हण याने नीच अछूत गंदा व्यक्ती ऐशा ब्राम्हण शब्द का अर्थ होता है अब अपणि बला औरो पर डालनेके लिये म्हूकी म्हूजोरी करके खुडको ये व्यक्ती सबसे कुदको उनचा कहैता और बाकी सबको अपनेसे निंचा समजता तो औरोको अपणेसे नींचा स्मझनेवालाव्यक्तीही कुदरत के नियमोसे सबसे नीचा अच्छुता होता है ,व्यक्ती सम्यक कर्म से कुशल कर्म से उंचासा होता है ये धर्तीपर सबसे पहिले जगतगुरु तथागत बुद्ध ने बताया उनके बाद बुद्ध काही सिद्धांत महानसंत गुरुनानक ,रविदास,घाशीराम, कबीर बसवेश्वर तुकाराम नामदेव चक्रधर सभी महानुभाव पंथ संप्रदाय के निर्माते महापुरुष जैसे के स्वामी विवेकानंद,येशू ख्रिस्त मोहंमद पैगंबर सभी ने बुद्ध काही समता मानवता प्रेम दया अहिंसा करुणा मैत्री इन संदेश को माना और प्रचार प्रसार की सिर्फ ब्राम्हण सनातन वैदिक हिंदू हिंदुत्व धर्म जो कहैने लगा वोहि खुद इन सभिसे अच्छूत रहा इसलिये भारत मे सभी महानुभावी समाज के इंसानोने इस ब्राम्हण नीच विचार के सनातन वैदिक हिंदू धर्म याने नीच ब्राम्हण को अपनेसे दुर अलग ही रखणा जरुरी है वर्णा एक ब्राम्हण सारे प्रबुद्ध भारत की धर्ती खुदके नीच बीचारो से गंदि करदेगा क्योके ब्राम्हण शब्द का अर्थ ही गंदा होता है इस्ली ये वो सबको गंदा नीच समजता और खुदका मतलब छुपानेके लिये खुद को उंचासमझता उसके धंदे भी नीच है पूजा अर्चना कर्मकांड पशुवोकी ब्ली देना औरोको धर्म संप्रदाय के नामपर लुटना काल्पनिक अंधश्रद्धा फैलाना मंदिरोमे काल्पनिक देवी देवता के नामपर चंदा वसूल करना ये सब गंदे धंदे ब्राम्हण के है और सारी दुनिया आंखोसे स्व्यंम देख रही है