हर साल हम महापुरुषों के कार्यों और गुणों को याद कर उन्होंने बताए मार्ग पर चलने की एवं उनकी शिक्षा ग्रहण करने की कोशिश उनके जयंती के मौके पर करते है. बैरहाल 9 राज्यों में बोधिसत्व के कार्य को आगे बढ़ाते हुए अपने इस समर्पित जीवन में कुछ किताबे लिखने की कोशिश जारी है. यह किताबे आपको आपके अतीत वैभव और समृद्ध संस्कृतिका दर्शन कराएगी. आज ऐसा महसूस हो रहा है की इस कार्य को पूरा करने हेतु यह जीवन काफी नहीं है.
प्रियदर्शी चक्रवर्ती सम्राट अशोक इनकी जयंती इस साल 29 मार्च, 2023 को चैत्र शुल्क अष्टमी के दिन आने वाली है. दुनिया के सबसे महान सम्राट को याद सिर्फ एक समूह द्वारा किया जाता है. वह समूह देश का एकलौता जागृत समूह है जो देश हर एक महापुरुष को अपना मान उसके प्रति कृतज्ञ होता है. सच कहूँ जिसे गुलामी का एहसास नहीं होता वह कभी जागरूक हो ही नहीं सकता. यह देश का और हमारा दुर्भाग्य है. जिस सम्राट ने अपनी जनता को अपनी संतान समझकर पाला और उनपर अपनी करुणा बरसाकर सब कुछ उनके नाम लिख दिया. ऐसा सम्राट किसी एक कौम का कैसे हो सकता है ?
प्रियदर्शी सम्राट अशोक इनके व्यक्ति शिल्पों के बारें में आज भी बहोत सारे मतभेत दिखाई देते है. क्योंकि आंध्र प्रदेश राज्य के अमरावती और जग्ग्यापेठ यहाँ पाए शिल्पों को कई इतिहासकारों ने सम्राट अशोक इनके शिल्प होने का दावा किया था और कुछ इतिहासकारों चक्रवर्ती मधाता इनसे उन शिल्पों की पहचान की थी. इनमे से एक शिल्प पॅरिस यहाँ के Musee Guimet इस वस्तुसंग्रहालय में रखा गया है. जिसमे चक्रवर्ती सम्राट के सात गुणों/विशेताओ (सप्तपर्ण) को दर्शया गया है. जिसमे धम्मचक्र, रानी, रथ, जेवर, संपत्ति, घोड़े और हाती शामिल है. साथ ही कर्नाटक के कंगनाहल्ली यहाँ पर से भी सम्राट अशोक इनका शिल्प सामने आया था.
ओड़िसा के ग्रामीण इलाकों के केंद्र में स्थित लांगुडी पहाड़ी पर स्थित पुष्पगिरी विहार सामने आया है. इस पुरातात्विक स्थली से कई सारे शिल्पों, वोटिव स्तूपों और ईटों के स्तूप खोजे गए है. पुष्पगिरी का जिक्र प्रसिद्द चीनी यात्री ह्वेंग त्सांग इन्होने अपने यात्रा वर्णन में पु-सी-पो-की-ली किया था. यह स्थल दक्षिण में भुवनेश्वर से 90 किलोमीटर और उत्तर में 35 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है.
सन 2000-2001 में ओड़िसा राज्य पुरातत्व विभाग के वस्तुसंग्रहालय प्रमुख डॉ. देवराज प्रधान इनके निर्देशन में दो पत्थर के शिल्प खोजे गए. जिनपर ब्राम्ही लिपि में कुछ लेख अंकित किए गए थे. इन लेखों की खोज ने सभी को चकित किया है. क्योंकि इन शिल्पों पर अंकित लेखों में सम्राट अशोक इनके नाम का निन्मलिखित उल्लेख किया गया है.
”अमा उपासका अशोकस समचियमाना”
जिसका अर्थ श्रद्धावान उपासक अशोक यह धम्म के प्रति इस स्तूप के निर्माण कार्य से जुड़े हुए थे. डॉ. देवराज प्रधान और बी. एन मुखर्जी इनका मानना है की इस थाली पर खोजा गया स्तूप सम्राट अशोक कलिंग में बनाए गए 10 स्तूपों में से एक है. पहले शिल्प में लम्बे बाल गोलाकार मस्तकपर बंधी और कानों में कर्णभूषा, साथ ही मनुष्यकृति धड दिखाई देता है.
दुसरे लेख में निन्मलिखित उल्लेख किया गया है.
”छी कारेन रांजा अशोखेना”
जिसका अर्थ समृद्धि के कर्ता अशोक यह वर्णित किया गया है. जिसमे सिंहासन दोनों हाथों को अपने मोड़े घुटने पर रखे हुए सम्राट दोन्हो तरफ रानीयाँ दिखाई देती है. सम्राट के सर पर पगड़ी और कानो में कर्ण दिखाई पड़ते है और हातों में बैंगल दिखाई देते है.
सोचिए प्रियदर्शी चक्रवर्ती सम्राट अशोक इनकी व्यक्ति विशेष ख्याति कितनी उन्नत रही होगी. ऐसे सम्राट की तुलना दुनिया में किसी से नहीं की जा सकती उस सम्राट को पहचान पाना मुस्किल हुआ है. ना जाने ऐसे कितने संशोधन सम्राट अशोक इनकी खोज में किए गए है लेकिन आज भी इस सम्राट को देश के लोग पहचान नहीं पाए है. जल्द ही कोशिश करूँगा सम्राट अशोक इनसे जुड़े कुछ रहस्य आपके रखने की.
आपका अपना….
बोधिसत्व