डाॅ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली के काॅन्फ्रेंस हाॅल(द्वितीय तल) में पत्रकारिता दिवस के अवसर पर ‘वर्तमान संदर्भ में डाॅ. भीम राव अम्बेडकर की पत्रकारिता’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी तीन सत्रों में संपन्न हुई। पहले सत्र में ‘सामाजिक परिवर्तन में पत्रकारिता की भूमिका और डाॅ. अम्बेडकर’ विषय पर प्रो. मंजु मुकुल कांबले मैम ने अपना वक्तव्य दिया। जिसमें उन्होंने कलम की ताकत को सामाजिक परिवर्तन की नींव कहा। इसके साथ ही अन्य वक्ताओं ने डाॅ. अम्बेडकर को संपादक, पत्रकार और एक अर्थशास्त्री के रूप में चिह्नित कर उनके चिंतन को अंतरराष्ट्रीय दृष्टि से संबद्ध किया। इस प्रकार संगोष्ठी का मूल अम्बेडकर के चिंतन के बहुआयामी पक्ष को उद्घाटित करना था।
इस कार्यक्रम के अंतिम सत्र में प्रो. ब्रिजेंद्र सर और डाॅ. हंसराज सुमन सर के साथ कुछ शोधार्थियों ने भी अपनी बात रखी। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार, विचारक, चिंतक, आलोचक, संपादक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष, वरिष्ठ प्रोफेसर श्यौराज सिंह बेचैन सर ने की।
डाॅ. अम्बेडकर की पत्रकारिता को लेकर अभी विश्विद्यालयों में बहुत कम काम हुआ है। ‘हिंदी की दलित पत्रकारिता पर पत्रकार अम्बेडकर का प्रभाव’ विषय पर पीएच-डी. करने वाले प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ सर पहले शोधार्थी हैं। हिंदी दलित पत्रकारिता के क्षेत्र में यह कार्य एक मील का पत्थर है। उनका यह शोध लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में भी शामिल है। उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में इस शोध विषय की चयन की प्रक्रिया और शोध करते समय उनके सम्मुख आयी तमाम चुनौतियों का भी उल्लेख किया। जब वे इस विषय को लेकर साहित्य अकादमी से पुरस्कृत हिंदी कवि वीरेन डंगवाल जो कि उनके शोध निर्देशक थे, के पास गए तो उन्होंने कहा कि यदि तुम इस विषय पर शोध करोगे तो मेरा नाम भी इसके साथ याद रखा जाएगा लेकिन यह एक कठिन कार्य है क्योंकि तुम हिंदी भाषी हो और डाॅ. अम्बेडकर का काम मराठी भाषा में है। इसलिए तुम पहले छ: महीने का समय लो और इस पर कुछ सामग्री जुटाओ फिर देखते हैं। इस शोध कार्य में मेरी कुछ मदद कौशल्या बैसंत्री जी ने की जो कि डाॅ. अम्बेडकर की 1942 में हुई वुमेन काॅन्फ्रेंस में पदाधिकारी के रूप में उपस्थित रही थीं और जिनकी आत्मकथा ‘दोहरा अभिशाप’ आप सभी पढ़ते हैं। पहले उन्होंने अपनी आत्मकथा मराठी भाषा में लिखने की इच्छा जाहिर की किंतु मैंने कहा कि यदि आप उसे मराठी भाषा में लिखेंगी तो वह सीमित हो जाएगी, आप हिंदी में लिखिए। इस पर उन्होंने कहा कि मेरी हिंदी अच्छी नहीं है। मैंने कहा कि मैं आपकी हिंदी में मदद करूंगा और आप मेरी मराठी में मदद कीजिए। कौशल्या जी ने कहा- ‘ठीक है।’
आज से लगभग सौ साल पहले डाॅ. अम्बेडकर ने मूकनायक निकाला था। जिसके लिए साहू जी महाराज ने आर्थिक सहयोग किया था। उस समय भी कई दलित पत्रिकाएं निकल रही थीं किंतु आर्थिक अभाव के कारण वे ज्यादा समय टिक नहीं पाईं । विडंबना यह है कि दलित पत्रकारिता आज भी आर्थिक सहायता के अभाव में अपना दम तोड़ देती हैं। इसके साथ ही उन्होंने
बाबा साहब ने अपनी पत्रकारिता में किन-किन मुद्दों को महत्व दिया ? उनकी पत्रकारिता का मूल उद्देश्य क्या था ? वे किस मूक समाज की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत कर रही थी ? आखिर पत्रकारिता का सामाजिक सरोकार क्या था ? कौन-कौन से सामजिक प्रश्न पत्रकारिता में प्रतिबिंबित हो रहे थे ?आदि प्रश्नों पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला।
डाॅ. हंसराज सुमन जी ने दलित पत्रकारिता को लेकर समसामयिक प्रश्नों को उठाया जिसमें उन्होंने कहा कि डाॅ. अम्बेडकर की पत्रकारिता को लेकर आखिर दूसरा ‘बेचैन’ क्यों नहीं हुआ? आखिर डाॅ.अम्बेडकर की पत्रिका पर दूसरी पीएच.डी क्यों नहीं हुई ? उन्होंने दलित पत्रकारिता को विश्विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल करने की बात भी कही। वहीं डाॅ. व्रिजेंद्र जी ने मीडिया तकनीकी पक्ष, सोशल मीडिया, यूट्यूब, फेसबुक आदि के सकारात्मक पहलुओं को रेखांकित किया। शोधार्थी अक्षय, कीर्ति, अनुज और आशीष ने भी डाॅ. अम्बेडकर के पत्रकारिता कर्म को रेखांकित किया। इस कार्यक्रम में हिंदी दलित साहित्य की महत्वपूर्ण कवयित्री, कथाकार, संपादक एवं आलोचक प्रो. रजत रानी ‘मीनू’ मैम की गरिमामय उपस्थिति रही।
रिपोर्ट- राजेश कुमार बौद्ध
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।