✍ राजेश कुमार बौद्ध
भारत की स्त्रियों की स्थिति में सुधार व उनमें जागरण लाने के कार्य में विभिन्न समाज सुधारकों में से ” सावित्रीबाई फुले “, ताराबाई शिंदे व अग्रणी रमाबाई का नाम अग्रणीय हैं। यदि हम भारतीय स्त्री आंदोलन को समझना चाहते हैं तो हमें सावित्रीबाई फुले के जीवन को तथा उनके कार्यों को तत्कालीन समाज के समक्ष रखकर आकना चाहिए। सावित्रीबाई फूले जो अत्यंत ही दबे – पिछड़े समाज माली जाति में पैदा हुई, 9 वर्ष की अल्पायु में विवाह के बाद घर गृहस्थी के साथ-साथ कठोर परिश्रम करके स्वयं पढ़ी और गाँव गाँव जाकर दीन-हीन दुखी दलित और स्त्रियों के लिए पाठशाला खोलने में अग्रसर हुई।
सावित्रीबाई फूले का जन्म 3 जनवरी 1831 को नायगांव में हुआ, 9 वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह महान क्रांतिकारी ज्योतिबाराव फूले से 13 वर्ष 1840 में हुआ। ज्योतिबा फूले उनके जीवन में शिक्षक बनकर आए, 1841 में पढ़ने-लिखने का प्रशिक्षण उन्हें ज्योतिबा फूले से ही मिला। पूना में रे जेम्स मिचेल की पत्नी नारी शिक्षा की पक्षधर थी। नार्मल स्कूल ध्दारा सावित्रीबाई फुले को अध्यापिका प्रशिक्षण दिया गया। अंग्रेजी ज्ञान होने के बाद सावित्रीबाई फुले ने 1855 में टामसन क्लार्कसन की जीवनी पढ़ी, टामसन क्लार्कसन नीग्रो पर हुए ज़ुल्मों के विरुद्ध न केवल लड़ें थे बल्कि कानून बनाने में सफल हुए थे। उनकी जीवनी पढ़कर सावित्रीबाई फुले बहुत प्रभावित हुई वह भारत के नीग्रो ( अछूतों और स्त्रियों) की गुलामी के प्रति चिंतित थी। उन्होंने भारतीय गुलामों के शोषण का मुख्य कारण ‘ अशिक्षा ‘ को खोजा।
1जनवरी 1848 में पूना में पहला स्कूल खोला गया जिसमें सावित्रीबाई फुले अध्यापिका हुई, उनके शिक्षिका बनने पर समाज में प्रखर विरोध हुआ। उन्हें धर्म को डुबाने वाली कहकर एवं अश्लील गालियां देकर उनको प्रताड़ित किया गया। गाली-गलौज,पत्थर, गोबर फेंकने पर भी सावित्रीबाई ने जब अपना काम बंद नहीं किया तो ससुर ध्दारा दबाव डलवाया गया कि यदि सावित्रीबाई फूले ने अछूतों को पढ़ाना बंद नहीं किया तो उनकी 42 पीढ़ियां नरक में जाएंगी।
सावित्रीबाई फूले के साथ साथ फातिमा शेख व सगुणा भी ज्योतिबा राव फूले की छात्राएं थी। फुले दम्पति ने शूद्रों-अतिशूद्रों और औरतों के बीच शिक्षा की ज्योति जलाकर गुलामी से मुक्ति की राह दिखाई। शिक्षा के माध्यम से स्त्री-मुक्ति के लिए वे प्रतिबद्ध थे। गांव-गांव में जाकर विघालय खोले एक ओर ऊंची जातियों में बाल- विवाह से हुई विधवाएं बलात्कृत होती और गर्भवती होने पर भ्रूण हत्या करती या शर्म से स्वयं आत्महत्या कर लेती। दुसरी ओर अछूत औरतें एक बूंद पानी के लिए भी सवर्णों की दया पर जीती, सामाजिक बहिष्कार की शिकार होती।
एक दिन जब सावित्रीबाई फुले बच्चों को पढ़ाने पाठशाला जा रही थी तो उन्होंने देखा कि रास्ते में कुएं के पास कुछ औरतें फटे पुराने कपड़े पहनकर ऊंची जाति की औरतों से मन्नतें कर रहीं हैं, हमें मार लो, पीट लो, हमारी मार मार कर खाल उधेड़ लो, परन्तु हमें दो लोटा पानी दे दो। चिलचिलाती धुप में कुएं से दूर खड़ी इन औरतों को देखकर ऊंची जाति की औरतें हंस रही थीं, और हसते-हसते लोटा भर भर कर पानी उनके ऊपर फेंक रहीं थीं। सावित्रीबाई फूले यह कृत्य सहन नहीं कर सकीं वे उन अछूत औरतों के पास गयी और उन्हें अपने घर लिवा गयी और अपना तालाब दिखाते हुए बोली, ” जितना चाहे पानी भर लो, आज से यह तालाब तुम सबके लिए हैं। ” कहते हुए उन्होंने 1868 में अपना तालाब अस्पृश्यों के लिए खोल दिया, अंततः शिक्षा एवं अछूतों का साथ न छोड़ने पर उन्हें उनके पति ज्योतिबा राव फूले के साथ घर से निकाल दिया गया।
1848 में एक तरफ इंग्लैंड में स्त्री के लिए शिक्षा की मांग हो रही थी तो दुसरी ओर फ्रांस में मानव अधिकार के लिए संघर्ष कर रहा था। वहीं भारत में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा राव फूले ने शूद्रों-अतिशूद्रों व स्त्रियों के लिए शिक्षा एवं सामाजिक आधार की नींव रखकर नयें युग का सूत्रपात किया। 1849 में पूना में उस्मान शेख़ के यहां उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा आरंभ की 1849 में ही पूना, सतारा व अहमदनगर जिले में भी पाठशालाएं खोली।
छूआछूत उस समय बहुत ज्यादा थी, शूद्र सामाजिक जीवन से केवल बहिष्कृत ही नहीं थे प्रताड़ित भी किये जाते थे। उनका खाना-पीना, रहना सब दूसरों की दया पर था, अतः उनका जीवन पशु के समान था। अछूत महिलाएं घंटो दया की भीख मांगती, बदले में थोड़ा-सा पीने का पानी मिलता।
उस्मान शेख़ की बहन फातिमा शेख भी स्त्री शिक्षा में सावित्रीबाई फुले के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही थी। 24 सितम्बर 1873 में ” सत्य शोधक समाज ” की स्थापना कर फुले दंपत्ति ने सैकड़ों विवाह साधारण तरीके से कम खर्च में कराया। 1875 से 1877 तक महाराष्ट्र में अकाल पीड़ित लोगों की मदद् के लिए सरकार पर दबाव डालकर अनेक रिलीफ केन्द्र एवं भोजन केन्द्र शुरू करवाए। फुले दम्पति को अपना कोई बच्चा नहीं था, अतः उन्होंने एक काशीबाई नाम की ब्राह्मण विधवा से हुऐ बच्चे को गोद लेकर उसे पढ़ाया- लिखाया और डॉक्टर के रुप मे अपने जैसा अच्छा इंसान बनाया।
सावित्रीबाई फूले कूशल वक्ता थी। उन्होंने समय-समय पर जनसाधारण के समक्ष सीधे अपनी बात रखी उनका पहला भाषण उधोग, दुसरा विधादान, तीसरा सदाचार, चौथा नशाखोरी, पांचवा भाषण कर्ज पर बेबाकी से दिया गया। उधोग, विधादान,सदाचार, नशाखोरी, और कर्ज पर उनकी स्पष्ट राय थी कि मनुष्य स्वाभिमान, मेहनत से स्वावलंबी होता हैं और शिक्षा प्राप्त करके बौद्धिक विकास की ओर बढ़ता है तथा कर्ज लेना, नशाखोरी से लिप्त होने से न केवल चारित्रिक पतन होता हैं तथा सम्मान गिरता है, बल्कि उसका आर्थिक व नैतिक पतन भी होता है। इतने सुलझे हुए ओजस्वी भाषण निश्चित रूप से लोगों में अपना असर छोड़ते हैं।
सावित्रीबाई फूले की कविताओं का अध्ययन करें और उन पर विचार करें तो हम देखेंगे कि उनकी कविताओं में प्रकृतिलीन विविधताएं है। उनकी लेखन शैली में काव्यात्मकता थी, तर्क था, इतिहास की खोजी नजर थी तो कहीं-कहीं उपदेशात्मक शैली भी मौजूद थी। स्वाभिमान हेतु धिक्कारती कविताएं कभी शिक्षा और सम्मान पाने के लिए प्रार्थना भी कर बैठती थी। काव्यफुले में 41 कविताएं हैं, जिसमें उन्होंने अपने ऐतिहासिक दृष्टिकोण व भावनात्मक लगाव के साथ प्रकृति के साथ भी संवाद बनाते हुए उनसे मनुष्य को सबक लेने की प्रेरणा भी बखूबी दी है।
अपने पति की मृत्यु के बाद वे ” सत्य शोधक समाज ” की अध्यक्ष बनीं उनकी अध्यक्षता में अनेक सुधारात्मक काम हुए। सत्य शोधक समाज की स्थापना 24 सितम्बर 1873 को हुई थी। जीवन के अंतिम दिनों में पूणे में प्लेग के प्रकोप से अछूत बस्तियों में लोगों की सेवा करती हुई सावित्रीबाई फुले का निर्वाण को प्राप्त हुई।
सावित्रीबाई फुले के सुविचार
1. शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलती है, खुद को जानने का अवसर देती है।
2. कोई तुम्हें कमजोर समझे, इससे पहले तुम्हे शिक्षा के महत्व को समझना होगा।
3. स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, शिक्षा ही इंसानों का सच्चा आभूषण है।
4. अज्ञानता को तुम धर दबोचो, मज़बूती से पकड़कर पीटो और उसे अपने जीवन से भगा दो।
5. स्त्रियां सिर्फ रसोई और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी है, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती है।
6. पत्थर को सिंदूर लगाकर और तेल में डुबोकर जिसे देवता समझा जाता है, वह असल मे पत्थर ही होता है।
7. देश में महिला साक्षरता की भारी कमी है क्योंकि यहां की महिलाओं को कभी बंधन मुक्त होने ही नहीं दिया गया।
8. तुम गाय,बकरी को सहलाते हो, नाग पंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो, लेकिन एससी,एसटी को तुम इंसान नहीं, अछूत मानते हो।
9. चौका बर्तन से ज्यादा जरूरी है पढ़ाई क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई?
10. इस धरती पर ब्राह्मणों ने स्वयं को स्वघोषित देवता बना लिया है।
11. अगर पत्थर पूजने से बच्चे पैदा होते तो नर नारी शादी ही क्यों करते।
12. अपनी बेटी के विवाह से पहले उसे शिक्षित बनाओ, ताकि वह आसानी से अच्छे-बुरे का फर्क कर सके।
13. किसी समाज या देश की प्रगति तब तक असंभव हैं, जब तक वहां की महिलाएं शिक्षित ना हों।
14. आखिर कब तक तुम अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को सहन करोगी। देश बदल रहा है, इस बदलाव में हमें भी बदलना होगा। शिक्षा का द्वार जो पितृसत्तात्मक विचार ने बंद किया है, उसे खोलना होगा।
15. जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, मेहनती बनो, आत्मनिर्भर होकर काम करो, ज्ञान और धन एकत्रित करो। ज्ञान के बिना सब खो जाता है। ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है, इसलिए खाली मत बैठो, जाओ जाकर शिक्षा ग्रहण करो।
16. मेरी कविता को पढ़ सुनकर यदि थोड़ा भी ज्ञान प्राप्त हो जाए, तो मैं समझूंगी मेरी मेहनत सार्थक हो गई। मुझे बताओ सत्य निडर होकर कि कैसी है मेरी कविताएं… ज्ञान परख यथार्थ मनभावन या अदभुत… तुम ही बताओ।
17. एक सशक्त और शिक्षित स्त्री सभ्य समाज का निर्माण कर सकती है। इसलिए तुम्हारा भी शिक्षा का अधिकार होना चहिए। कब तक तुम गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी रहोगी। उठो और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करो।
18. ब्राह्मणवाद केवल मानसिकता नहीं, एक पूरी व्यवस्था है। जिससे धर्म के पोषक तत्व देवी-देवता, रीति-रिवाज, पूजा-पाठ आदि गरीब दलित जनता को अपने में काबू में रखकर उनकी उन्नति के सारे रास्ते बंद करते हैं और उन्हें बदहाली भरे जीवन में धकेलते आए हैं।
19. गरीबों और जरूरतमंदों के लिए हितकारी और कल्याणकारी कार्य शुरू किए हैं। मैं अपने हिस्से की जिम्मेदारी भी निभाना चाहती हूं। मैं आपको यकीन दिलाती हूं कि मैं आपकी हमेशा सहायता करुँगी। मैं कामना करती हूं कि ईश्वरीय कार्य अधिक लोगों की सहायता करेंगे।
लेखक
राजेश कुमार बौद्ध
जिला-गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) Mob.N- 9616129934, Email- prabuddhvimarshgkp@gmail.com