मूकनायक
महाराष्ट्र/नागपुर
ओमप्रकाश वर्मा
विश्व रेबीज दिवस यह अंतरराष्ट्रीय जागरूकता अभियान ग्लोबल अलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल इस संयुक्त संगठन द्वारा शुरुआत हो चुकी है जिसका मुख्यालय अमेरिका में है। संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्यालय वाले यह संयुक्त राष्ट्र का निरीक्षण है और विश्व स्वास्थ्य संगठन, पॅन अमेरिकन स्वास्थ्य संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मानव और पशु चिकित्सा स्वास्थ्य संगठनों द्वारा समर्थित है। विश्व रेबीज दिवस हर साल 28 सितंबर को लुई पाश्चर की पुण्यतिथि के उपलक्ष में मनाया जाता है, जिन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पहला प्रभावी रेबीज टीका विकसित किया था। ‘विश्व रेबीज दिवस’ का उद्देश्य मनुष्यों और जानवरों पर रेबीज के प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, खतरनाक बीमारी को रोकने के तरीके के बारे में जानकारी और सलाह प्रदान करना और रेबीज नियंत्रण में बढ़ते प्रयासों की वकालत का समर्थन करना है।
दुनिया के कई देशों में रेबीज़ एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। विकासशील देशों में होनेवाली कुल मानव मौतों में से 99% मौतें रेबीड कुत्ते के काटने से होती हैं, जबकि 95% मौतें अफ्रीका और एशिया में होती हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर प्रत्येक महाद्वीप के लोगों और जानवरों को रेबीज का खतरा है। रेबीज की रोकथाम में एक बड़ी समस्या जोखिम वाले लोगों के बीच बुनियादी जीवन-रक्षक ज्ञान की कमी है। इस मुद्दे पर काम करनेवाले संगठन अक्सर अलग-थलग दिख सकते हैं और एक उपेक्षित बीमारी के रूप में रेबीज पर्याप्त संसाधनों को आकर्षित नहीं करता। स्वास्थ्य जागरूकता दिवस बीमारियों पर नीतियों को बेहतर बनाने और उन्हें रोकने के लिए संसाधनों को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इस अहसास के कारण रेबीज जागरूकता दिवस मनाया गया।
रेबीज गर्म खून वाले जानवरों विशेषकर कुत्ते, खरगोश, बंदर, बिल्ली आदि के काटने से होने वाली बीमारी है। रेबीज़ से पीड़ित व्यक्ति को पानी से बहुत डर लगता है। इसलिए इसे जलसंत्रास कहा जाता है। रेबीज एक घातक बीमारी है। लेकिन बीमारी होने से पहले ही टीका देकर इससे बचाव किया जा सकता है। रेबीज़ कुत्तों को भी प्रभावित करता है। यह कुत्तों से इंसानों में फैलने वाली बीमारी है। इस बीमारी के लक्षण कुत्ते के काटने के 90 से 175 दिन बाद दिखाई देते हैं। जंगल में भेड़िये जंगली कुत्तों को काटते हैं, जिससे जंगली कुत्ते रेबीज की चपेट में आ जाते हैं और ये जंगली कुत्ते गाँव के कुत्तों को काटते हैं, जिससे यह बीमारी फैलती है। ऐसा रेबीज कुत्ता अगर किसी इंसान को काट ले तो इंसानों को यह बीमारी हो सकती है। यह बीमारी कुत्ते की लार से फैलती है। रेबीज़ किसी भी गर्म खून वाले जानवर को संक्रमित कर सकता है, जैसे मनुष्य। यह रोग पक्षियों में भी पाया गया है। मनुष्यों को चमगादड़, बंदर, लोमड़ी, गाय, भेड़िये, कुत्ते, नेवले जैसे कुछ जानवरों से रेबीज हो सकता है। अन्य जंगली जानवर भी रेबीज़ संचारित कर सकते हैं। हैम्स्टर, गिनी पिग, चूहों जैसे जानवरों में रेबीज़ बहुत कम पाया जाता है। रेबीज जीवाणु जानवरों की नसों और लार में पाया जाता है। यह बीमारी आमतौर पर किसी जानवर के काटने से होती है। कई बार जानवर गुस्से में आकर हमला कर देता है और काट लेता है। रेबीज का मानव से मानव में संचरण बहुत दुर्लभ है।
बुखार और ठंड लगना आमतौर पर 2 से 12 सप्ताह तक रहता है। रोग के लक्षणों में मानसिक परेशानी, अनिद्रा, मतिभ्रम, सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार न करना, बढ़ा-चढ़ाकर व्यवहार करना शामिल हैं। रेबीज से पीड़ित व्यक्ति का गला पूरी तरह से खरोंचा हुआ होता है और जब वह व्यक्ति बोलने की कोशिश करता है तो गले की खरोंच के कारण कुत्ते के भौंकने जैसी आवाज आती है। असली कुत्ते के काटने जैसी कोई आवाज नहीं है। लेकिन कुछ अशिक्षित लोग ऐसा ही सोचते हैं और कुत्तों को मार देते हैं। एक पालतू कुत्ते को रेबीज से बचाने के लिए, तीन महीने से अधिक उम्र के पालतू कुत्ते को हर छह महीने में रेबीज के खिलाफ टीका लगाया जाना चाहिए। पालतू कुत्ते को किसी भी तरह से आवारा कुत्तों के संपर्क में आने देना खतरनाक है। यदि कुत्ते को कुछ अलग महसूस हो तो पशुचिकित्सक से संपर्क करना जरूरी है। वे आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए नसबंदी सर्जरी भी करते हैं। अपने कुत्ते को चमगादड़ों से दूर रखने से रेबीज होने की संभावना कम हो सकती है।
किसी जानवर के काटने के बाद जितनी जल्दी हो सके घाव को साबुन और साफ पानी से धोने से घाव में रेबीज के कीटाणुओं को कम करने में मदद मिल सकती है। यदि संभव हो तो एंटीसेप्टिक मलहम लगाएं और तुरंत नजदीकी डॉक्टर से सलाह लें। पीईपी (पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस) रेबीज के खिलाफ एक प्रभावी टीका है और इसे डॉक्टर की सलाह पर कुत्ते के काटने पर टीका लगाया जाना चाहिए। रोगी को 14 दिनों के भीतर मानव रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन की एक खुराक और रेबीज वैक्सीन की चार खुराक मिलनी चाहिए। चोट लगने के बाद जितनी जल्दी हो सके रेबीज वैक्सीन की पहली खुराक दी जानी चाहिए। तीन, सात और चौदह दिन के बाद वैक्सीन की खुराक देनी चाहिए। जिस मरीज को चोट लगने से पहले टीका लगाया गया हो उसे इम्युनोग्लोबुलिन का डोस नहीं भी लिया तब भी चलेगा। उसे चोट लगने के बाद का टीका दो दिन बाद लगवाना चाहिए। आजकल पेट में इंजेक्शन देने की जरूरत नहीं होती, बल्कि बाहों में दिया जानेवाला इंजेक्शन उपलब्ध है। इस बीमारी का निदान पशु के मस्तिष्क की जांच करके किया जा सकता है। इसके लिए जानवर का पांच से दस दिन तक निरीक्षण करना बहुत जरूरी है।
लगातार लार बहना, लार टपकना, गतिविधियों पर नियंत्रण की कमी, बुखार, सिरदर्द, अनिद्रा, नाक, आंख और कान से पानी और स्राव का डर और अत्यधिक भौंकना या भौंकने की कोशिश करना रेबीज के लक्षण हैं। इस रोग में पशु अस्वस्थ और बेचैन हो जाता है, आवाज और रोशनी का उस पर जल्दी असर होता है, वह भुक-प्यास के बारे में सब भूल जाता है और किसी भी चीज को काटने की कोशिश करता है। इसके अलावा इसमें जानवर की लार बहुत ज्यादा बहती है, उसकी आंखें भयानक लगती हैं, उसे पानी से डर लगता है, उसे बुखार हो जाता है और वह किसी भी चीज पर उछल-कूद करने लगता है। इस प्रकार में पशु कभी-कभी लकवाग्रस्त हो जाता है और गर्दन की मांसपेशियाँ अकड़ जाती हैं; जानवर अपनी पूँछ को अपने पिछले पैरों में छिपाकर चलता है। इस प्रकार में संक्रमण पहले रीढ़ की हड्डी और फिर मस्तिष्क तक पहुंचता है। बाद में हृदय और फेफड़े भी संक्रमित हो जाते हैं, पक्षाघात हो जाता है, पशु को भूख लगना बंद हो जाती है और फिर उसकी मृत्यु हो जाती है।
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