Sunday, December 22, 2024
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जनता के मन से प्रकट होना, यही बुद्ध की नीति

मूकनायक

महाराष्ट्र /नागपुर

प्रविण बागडे
नागपूर
भ्रमणध्वनी : 9923620919
ई-मेल : pravinbagde@gmail.com
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तथागत का मध्यममार्ग आत्मज्ञान का आसान, सीधा मार्ग है, जो जीवन के दो चरम, आनंद और दुख से बचता है। तथागत द्वारा इस मध्यममार्ग की शिक्षा ही धम्म है। डॉ. बाबासाहब अंबेडकर उन्हें अवैदिक, नास्तिक, अनात्मवादी, भौतिकवादी, दार्शनिक-आदिम, शाक्य गौतम, साम्यवादी समाज के साथ जीवंत संबंध साझा करनेवाले, दयालु, उदारवादी, समतावादी, सार्वभौमिक भाईचारा, समानता और मानव स्वतंत्रता, प्रत्येक के लिए प्यार करनेवाला मानते थे। दुनिया के पहले क्रांतिकारी महामानव महात्मा तथागत भगवान गौतम बुद्ध जिन्होंने मानव कल्याण के लिए लाभकारी गुणों को विकसित करनेवाली वैज्ञानिक, तर्कसंगत, निर्भय और शुद्ध जीवन शैली पर आधारित एक अलौकिक पवित्र धम्म की स्थापना की।

14 अक्टूबर यह डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर के लाखों अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तारीख है। क्योंकि 1956 में इसी तारीख को डॉ. अम्बेडकर ने नागपुर में बौद्ध धर्म अपना लिया था। इस तिथि के साथ-साथ विजयादशमी पर भी दीक्षाभूमि में लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं। लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण डॉ. बाबासाहब अंबेडकर स्मारक समिति ने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए थे और अनुयायियों से इस स्थान पर न आने की अपील की थी। अधिकांश लोग घर पर ही रहे, लेकिन एक छोटे समूह में कुछ अनुयायियों ने दीक्षाभूमी के बंद दरवाजों के बाहर से ही गौतम बुद्ध और डॉ. अम्बेडकर इन्हे श्रद्धांजलि अर्पित करने का मुद्दा बनाया। श्वेत कपड़े पहने अनुयायी छोटे समूहों में इस क्षेत्र को भेंट दे रहे थे। कुछ लोगों ने दीक्षाभूमि के द्वार के बाहर से श्रद्धांजलि अर्पित की। कुछ भक्तों की आँखो ने डॉ. बाबासाहब अंबेडकर इनके अस्थिकलश को दूर से दर्शन करने का प्रयास किया। हालाँकि सामान्य भीड़ नहीं थी, फिर भी कुछ दुकानदारों ने गौतम बुद्ध और डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर की मूर्तियां बेचने के लिए एक अस्थायी स्टॉल लगाया था। कुछ संगठनों ने दीक्षाभूमि के आसपास कुछ लोगों के घूमने की अपेक्षा में आगंतुकों को चाय और पानी वितरित करने के लिए स्टॉल लगाए। पुलिस ने बंदोबस्त रखा और स्थिति पर कड़ी नजर रखी। दीक्षाभूमि की ओर जाने वाली सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए बैरिकेड्स लगाए गए थे। डॉ. बाबासाहब अंबेडकर स्मारक समिति ने भी इस जगह पर भीड़ न लगाने की अपील के बैनर लगाए थे। समता सैनिक दल के स्वयंसेवकों ने भी अनुयायियों का मार्गदर्शन करने में मदद की।

धर्मचक्र प्रवर्तन अर्थात महात्मा बुद्ध द्वारा अपनी प्राप्ति के बाद दिया गया पहला धार्मिक प्रवचन है। जिस दिन सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी में बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी, उस दिन को बौद्ध इतिहास में “अशोक विजयदशमी” के रूप में मनाया जाता है। धर्मचक्र या धर्म का चक्र भारतीय धर्मों में प्रयुक्त एक प्रतीक है। बौद्ध धर्म में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। हिंदू धर्म में इस प्रतीक का प्रयोग विशेष रूप से धर्म परिवर्तन के स्थानों पर किया जाता है। इस प्रतीक का प्रयोग आधुनिक भारत में भी किया जाता है। धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस एक महत्वपूर्ण बौद्ध त्योहार है। हर वर्ष भीम अनुयायी 14 अक्टूबर या विजयादशमी को यह त्योहार मनाते हैं। “धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस” भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन महाराष्ट्र समेत देशभर से लाखों अनुयायी नागपुर आते हैं। धम्मचक्र प्राचीन काल से बौद्ध धर्म का एक प्रमुख प्रतीक है। यह अष्टांगिक मार्ग का प्रतीक है, यह प्रगति और जीवन का भी प्रतीक है। सारनाथ में बुद्ध द्वारा दिया गया पहला उपदेश धम्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है।
धर्मान्तरण के कारण दलित युवा (अम्बेडकरवादी) अधिक प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक हो रहे हैं। पिछले 40 वर्षों से राजनीतिक स्वार्थ के लिए जाति-धर्म के जाल में फंसाए रखने की कोशिशों के बावजूद दलित युवाओं में बंधनों को तोड़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। इसका एकमात्र प्रमाण 1972 के बाद दलित युवाओं के आंदोलन हैं।

भगवान बुद्ध के व्यक्तित्व की छाप और दर्शनशास्त्र पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि, भारत के इस महान सपूत ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया है। भारत के इतिहास में इतना प्रतिभावान, प्रखर बुद्धिजीवी, आदर्शवादी एवं मानवतावादी कोई नहीं हुआ। इसके आगे भी ऐसा व्यक्ति होना संभव नही जिसे सारी दुनिया सम्मान से विनम्र होते है। बुद्ध एक ऐसे आत्मज्ञानी व्यक्ति थे, जिन्होंने दुनिया को सबसे पहले प्रखर बौद्धिकता और आदर्शवाद की शिक्षा दी। भगवान बुद्ध कहते हैं, अत्त-दीपो-भव, अत्त-विरहत्, अत्त-सरन, अर्थात् हे मनुष्यों अपना प्रकाश स्वयं बनो, स्वयं प्रकाशित हो, स्वयं को समर्पित करो और स्वयं ही विचरण करो, किसी और के प्रति समर्पण मत करो, कोई भी आपके प्रति समर्पण के योग्य नहीं है, आप स्वयं ही अपने आश्रय हैं। सभ्यता एवं संस्कृति के इतिहास में सबसे पहले भगवान बुद्ध ने ही मनुष्य को पराई प्रवृत्तियों, ईश्वर, भगवान, आत्मा परमात्मा की अवधारणा से मुक्त होने का मंत्र दिया था और इसे बनाये रखना आज के समय की जरूरत है।

बुद्ध का चरित्र एवं चरित्र निर्मल जल की धाराओं के समान था। वह करुणा के महासागर, दिनदुर्बलो का मसीहा, सखा, मित्र और मार्गदर्शक थे। दुनिया के इतिहास में ऐसे व्यक्ति असाधारण होते हैं, ऐसे सम्यक संबुध्द के अनुसार डॉ. बाबासाहब अम्बेडकर ने हमारे सामने एक रचनात्मक उदाहरण रखा। बुद्ध-बाबासाहब हमारी सार्वभौमिक मुक्ति के मार्गदर्शक हैं। उन्होंने हमें सन्मार्ग प्रदान किया है लेकिन मार्गक्रमण हमें करना है। इस प्रयोजन के लिए हमें स्वयं प्रकाशित होकर बुद्ध-धम्म और संघ के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए और धम्मचक्र प्रचार की सही क्रांति को गतिमान रखना चाहिए। सभी लोगों को 68 वीं धम्मक्रांति की शुभकामनाएँ।

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