मूकनायक
महाराष्ट्र/ नागपुर जिला ब्यूरो चीफ सुधाकर मेश्राम
इ.पू.528 मे तथागत गौतम बुद्ध ने सारनाथ के मृगदाय वन मे पाच पिरिवारजको नये धर्मविनय मे दिक्षीत करके भगवान बुद्ध ने धम्मचक्र का प्रवर्तन किया था। यही मानवीय विचार धारा,समाज वादी धर्मनिरपेक्ष, न्याय, स्वातंत्र्य, समानता और बंधुता की विचार घर घर मे परिवर्तन लाने के लिए डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागवंशियों की भूमि नागपूर शहर मे बौध्द धम्म दीक्षा समारोह संपन्न हुआ जिसमें लाखों अनुयायियों के साथ बाबा साहब ने धर्म दीक्षा ली थी। नागपूर को वैश्विक धम्मचक्र क्रांती का ऐतिहासिक महत्त्व है। यही विचार आगे बढाते हुये बॅरिस्टर खोब्रागडे के विशेष विनंती के कारण 16 अक्टूबर 1956 को डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने चंद्रपूर, महाराष्ट्र मे तबीयत ठीक नही होने के बावजूद तीन लाख लोगो को त्रिशरण,पंचशील और 22 प्रतिज्ञाए कहलवाकर उपस्थित जनो को धम्म दीक्षा दी थी। नागपूर का धम्म दीक्षा होने के बाद, चंद्रपूर जिला महाराष्ट्र मे 16 अक्टूबर 1956 को धम्म दीक्षा शुभारंभ हो गया था। नागपूर-जाम-वरोरा मार्ग से जाना तय हुआ था। लेकीन कुछ घटनाए ध्यान मे रखते हुए उमरेड-भिवापूर-नागभिड-मुल- चंद्रपूर मार्ग से जाना निर्णय लिया गया। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर नागपूर के सीताबर्डी स्थित श्याम होटल मे रूके थे। उमरेड, भिवापूर, नागभीड, यहाॅ पर पाच-दस मिनिट का मार्गदर्शन करते हुये मुल तहसील पहुचे। मुल तहसील मे एक महिलाने बाबासाहेब आंबेडकर को भाकरी और हरी मिरची की चटनी खिलाया था मुल से चंद्रपूर जाते हुये एक पहाडी के पास गाडी को रोकने के लिए डॉ बाबासाहेब आंबेडकर पहाडी के तरफ जा रहे थे .पहाडी पर उत्खनन के बाद बुद्ध की मूर्ती पाई गयी। 04 नवंबर मे कार्यक्रम का आयोजन हर साल किया जाता है। डॉ बाबासाहेब आंबेडकर खोबरागडे,दादा गायकवाड, वराळे, बाबू आवळे इनके साथ मे चंद्रपूर पहुचे। रात के 9 बजे धम्म दीक्षा का कार्यक्रम था। समारोह की जबाबदारी बॅरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे पर थी। मंच सजावट, मंच पर बाबासाहेब आंबेडकर कैसे आयेंगे ,सुरक्षा कैसी होगी ,मंच पर कोण ,कोण रहेगा, आदि का नियोजन बॅरिस्टर खोब्रागडे के दादाजी देवा खोब्रागडे, श्रिहरी खोब्रागडे, हेमचंद ,श्याम, गिरीश ने किया था। इस कार्यक्रम मे पुरा खोब्रागडे का पूरा परिवार प्रसन्न और आनंदित था। धम्म दीक्षा शुभारंभ में तीन लाख लोग थे डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के नाम की घोषणा कर रहे थे “बाबासाहेब साहेब करे पुकार, बुद्ध धम्म का करो स्वीकार ” बाबासाहेब आंबेडकर को सुनने के लिए जनता शांत हो गयी। त्रिशरण, पंचशील और 22 प्रतिज्ञाए कहलवाकर उपस्थित जनता को धम्म दीक्षा दी। दीक्षा लेने के बाद के बाद डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर शासकीय रेस्ट हाऊस गये,लेकिन अस्वस्थ प्रकृती के कारण रात्रभर सो नही पाए थे। 17 अक्टूबर को बाबासाहेब आंबेडकर और माता रमाई आंबेडकर को भोजन का आयोजन किया गया था! राजाभाऊ खोब्रागडे के पिताजी भारतीय बौद्ध महासभा, चंद्रपूर के अध्यक्ष थे। बॅरिस्टर राजाभाऊ खोब्रागडे लंडन के लाॅ कॉलेजसे बॅरिस्टर हुये थे,बाबासाहेब आंबेडकर उनको मानसपुत्र मानते थे। बाबासाहेब आंबेडकर ने ,देवा खोब्रागडे जो लकडी के व्यापारी थे ,पुछा मिलिंद कॉलेज को लकड़ी भेज सकते क्या, देवा खोबरागड़े ने तत्काल ही बोलकर लड़कियां रेल द्वारा भेज दि गई। खोबरागडे परिवार दानी था । भोजन के बाद महिला मंडल के साथ बात करते समय डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा” अभी आपको ही सब कुछ करना है,मेरा कही सही नही,मेरी तबीयत ठीक नही ,मै इसके बाद आ नही सकूंगा ,ये मेरी आखरी मुलाकात है ” ये बाते सुनने के बाद सारी महिलाएं रो पडी। डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर को रेल्वे स्थानक पर देखने के लिए जनसमुदाय उपस्थित था.नागपूर आकर बाबासाहेब आंबेडकर दिल्ली के लिए रवाना हुये। गंभीर हालात होते हुये तमाम जनता को काबिल बनाया , खंबीर और हम आपस मे ही……हम थे कभी शिकारी,बन गये शिकार…..आऔ चले साथ मे….येही है मूकनायक की पुकार…। नमो बुध्दाय सप्रेम जयभीम जय संविधान।