Monday, December 23, 2024
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भारत का संविधान “उद्देशिका”

मूकनायक

देश

“राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा”

हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य[1] बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय,

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,

तथा उन सबमें,

व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता[2] सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए,

दृढ़ संकल्प होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति माघशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।


[1] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा-2 द्वारा (3-1-1977 से) संपूर्ण प्रभु्त्व लोकतंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर प्रतिस्थापित

[2] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा-2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्ट्र की एकता” के स्थान पर प्रतिस्थापित.

समस्त भारत वासियों को भारत का संविधान की उद्देशिका को कंठस्थ कर लेना चाहिए और जैसा की उद्देशिका में कहा गया है कि भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए भारत का संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्म अर्पित करते हैं दिनांक 26 नवंबर 1949.

परंतु आज हम देखते हैं और पाते हैं कि भारत की लगभग 99.99% जनता को अर्थात भारत के नागरिकों को महिला अथवा पुरुष को भारत का संविधान के उद्देश्य का में दिए गए शब्दों का भी ज्ञान नहीं है ना ही उनके अर्थ का विषय जानते हैं और ना ही किसी को भी कंठस्थ है और सबसे बड़ा दुर्भाग्य इस बात का है कि भारत के नागरिक भारत का संविधान को पढ़ना ही नहीं चाहते उसके अर्थात
संविधान के लिए लड़ने की बात तो बहुत दूर है इसलिए सबसे पहले समस्त भारतीयों को भारत का संविधान पढ़ना होगा और अपने हक अधिकारों के लिए लड़ना होगा जय संविधान।

लेखक: रवि शेखर बौद्ध मेरठ

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