मूकनायक महाराष्ट्र / नागपूर
सुधाकर मेश्राम
पेशवाई विचारों ने इस जमीं पर रहने वाले मूल निवासी बहुजनो को नेस्तनाबूत ही नही बल्कि सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, श्रध्दा, उपासना का स्वातंत्र्य और उच्च दर्जे की समानता और बंधूता के पास भी भटकने नही दिया। वो महान कार्य बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर के मूकनायक ने समस्त बहिष्कृत भारत के जनता को डॉ भीमराव अंबेडकर ने भारत का संविधान देकर प्रबुध्द भारत की दीक्षा दी है।
बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने गुंगे समाज को जगाकर, सही दिशा में जाने के लिये, संघर्ष का मंत्र प्रदान करने के लिये, बल और शक्ति निर्माण करने के लिये, व्यवस्था के विरोध में आवाज उठाने के लिये, दबे कुचले बहुजन समाज की आवाज बुलंद करने के लिए 31 जनवरी 1920 को मूकनायक अखबार (पाक्षिक) प्रकाशित किया था। विषमता के विरूध्द न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता के विचार समाज को परिवर्तन करते हुए मूकनायक का निर्माण किया गया था। जिसका रजिस्टर नं. B-1430 था। मूकनायक के माध्यम से सामाजिक, राजकीय, आर्थिक, पूर्नरचना गठित करते हुये एक संघ समाज की स्थापना करने का मकसद था। मूकनायक का निर्माण यानि समाज प्रबोधन का प्रभावी अविष्कार था। बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर को पढने के लिये विलायत को जाना पडा, इस काल में मूकनायक की परवरिश मे व्यवस्थापकीय मंडल ने विशेष ध्यान दिया नहीं इसका परीणाम एप्रिल 2023 को मूकनायक बंद हो गया।
इसका मतलब यह नही था की, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तूफानों से हार मान गए, एक शायर ने कहा है, “तुफानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो, मल्लाहों का चक्कर छोडो, तैर के दरिया पार करो।” बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर ने विनाशक प्रवृत्ती पर वार करते करते कोई आयेगा और हमे कामयाब बनायेगा इसलिये खुद ही समाज के दुखों का दरिया पार करने के लिये समाज को बुलंदीयों तक पहुंचाने के लिय ‘बहिष्कृत भारत’ पाक्षिक का निर्माण किया। जो शेर बरसों से जंजीर मे जकड़े हुये थे उन शेरों को ऐसे दर्शाया कि भारत की व्यवस्था भारत में क्या है बहिष्कृत भारत का रजिस्ट्रेशन B2250 था। इस पक्ष में बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने समग्र समाज को आत्मसम्मान प्रतिष्ठा और आत्ममूल्य के लिए संघर्ष करने वाला समाज बनाना था 15 नवंबर 1929 को “बहिष्कृत भारत” मूकनायक तरह प्रकाशित किया था लेकिन डॉ अंबेडकर ने हार नहीं मानी किसी ने कहा था, “आंखों से टूट जाए तो वह पत्ते नहीं है हम आंधी से कोई कह दे किया अपने औकात में रहे” अपने समाज की आवाज बुलंद करने के लिए 24 नवंबर 1930 को जनता का पहला अंक प्रकाशित किया जिसका रजिस्ट्रेशन B2779 था। जनता का पाक्षिक रूपांतरण साप्ताहिक में हुआ इस साप्ताहिक ने एक महत्वपूर्ण विचार शीर्ष भाग में लिखा जाता था “गुलाम को गुलामी का एहसास करा दिया जाए तो वह गुलामी बंद करेगा” इस साप्ताहिक में जनता को बंडखोर का तत्व ज्ञान और संघर्ष रूप प्रति के लिए जनता का जन्म हुआ था और सब यह समाज अपने अधिकारों के लिए किया गया। बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने जनता साप्ताहिक को चलाए रखने की बहुत ही इच्छा थी। बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर कहते थे अपने स्वावलंबन के और कल के राजकीय के लिए समाचार पत्र को जोश में लाना जरूरी था।आज भले ही “जनता” की कीमत नहीं है लेकिन आने वाले समय में सही जरूर समाज में आएगी जनता का पत्र आयुष लगभग 25 साल का था। अपने 25 साल में समग्र मानव को गुलामी के खिलाफ लड़ने की ताकत “जनता” ने दी है। मूकनायक से प्रबुद्ध भारत का सफर बहुत ही महत्वपूर्ण है और समाज को एक नई दृष्टि प्रदान की है जनता का नामकरण “प्रबुद्ध भारत” 4 फरवरी 1956 को प्रकाशित किया गया। 14 अक्टूबर 1956 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने नागवंशीय लोगों की नगरी नागपुर में बुद्ध धम्म दीक्षा लाखों अनुयायियों के साथ ली थी। बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक परिवर्तन की नई दुनिया बनाई थी। संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाकर अनुच्छेद 1 (1) के मुताबिक इंडिया अर्थात भारत एक राज्यों का संघ बन गया है और भारत देश के तमाम लोगों ने सार्वभौम, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकशाही गणराज बनाने का न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता में परिवर्तित करने का संकल्प लिया। सही मायने में बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने भारत की जनता को एक ही धागे में बांधकर बहिष्कृत भारत के जनता को जवाबदेही नागरिक बनाते हुए राष्ट्रीय एकात्मता में प्रबुद्ध भारत बनाने की दीक्षा दी थी।
लेखक: सामाजिक चिंतक,
जिला ब्यूरो चीफ मूकनायक नागपुर