Sunday, December 22, 2024
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“जाति है की जाती ही नहीं”

मूकनायक /देश

राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा

हम सब जानते हैं कि इतने साल में आजादी मिलने के बाद भी हम अपने आजाद देश में जातिमूक्त भारत नहीं बना पाए हैं। हर साल हम सब मिलकर स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। पर क्या सही मायनों में हम स्वतंत्र हुए भी हैं कि नहीं। सच कहूं तो नहीं हुए हैं अपनी सोच से, पाखंडवाद से, या उन दकियानूसी परंपराओं में जो हमें जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हैं। ऐसी ही स्थिति है जातिवाद की जो आज भी ज्यों से त्यों बनी हुई है। कहने को तो हम सब बोल देते हैं कि कहां है जातिवाद सब मिलकर रहते हैं। पर अगर हम सही से तहकीकात करें तो या कुछ ऐसे सवाल उठाएं तो आज भी हमारे देश या समाज में जातिवाद, क्षेत्रवाद, पूंजीवाद और ना जाने क्या क्या निकल कर आएगा। इन सबकी तरह जातिवाद एक ऐसा मुद्दा है जो हमारे समाज का घिनौना चेहरा सामने लाता है।

जाति शब्द “कास्टा”से निकला है, जिसका अर्थ होता है “जाति वंश या नस्ल”।आधुनिक अर्थों में इसे जातिवाद में तब्दील कर दिया गया। जाति व्यवस्था को हिंदुओं ने 4 वर्णों में बाट दिया गया था -“ब्राह्मण, क्षत्रिय ,वैश्य, और शुद्र। यानी कि लोगों के कारोबार को लेकर ये बटवारा हुआ । इन सबमें यदि किसी जाति को सबसे अधिक प्रभावित किया गया तो वो हैं शुद्र जाति को जिसे हम आजकल अनुसूचित जाति व्यवस्था के नाम से भी जानते है।

इतिहास की बात ना भी करें तो आज भी कुछ जगह पर अनुसूचित जाति के साथ काफी बुरा व्यवहार किया जाता हैं अभी कुछ टाइम पहले राजस्थान के जालोर में एक छोटी जाति के बच्चे को उसके टीचर द्वारा सिर्फ इसीलिए पीटा गया क्योंकि वो छोटी जाति से था । वहीं यूपी में भी मंदिर के नलके से पानी पीने पर यही सब हुआ । दलित समुदाय को लोगों को कई जगह पर आज भी घुरचड़ी चढ़ने से रोका जाता है। ना जाने कितनी दलित समाज की बहन बेटियों के साथ बलात्कार होते हैं । हाथरस की घटना इसका जीता जागता उदाहरण है।कितने मासूम इसी आग में झोंक दिए जाते हैं। इस जातिवाद में कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है सिवाए समाज और देश को हानि पहुंचाने के अलावा । हम आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

हम सब को मिलकर इस पर समाधान निकालना होगा । सरकार को समर्थन देना होगा ताकि भविष्य में इस जातिवाद को खत्म किया जा सके। ओर देश को उन्नति के रास्ते पर ले जा सके । हम सब बटकर नहीं मिलकर रहे।

जय भीम नमो बुधाये
🙏🏻💙🌹

लेखक : नीलम सोनीपत
सामाजिक चिंतक और पत्रकार जिला ब्यूरो

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