Sunday, January 5, 2025
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डॉ. अंबेडकर की बी.बी.सी. लंदन से बुद्ध धर्म पर रेडियो वार्ता

मूकनायक/ देश

राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा

🔷 12 मई 1956 को ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन (बी.बी.सी.) लंदन से वार्ता करते हुए डॉ. आंबेडकर ने ‘मैं बुद्ध धर्म क्यों पसंद करता हूं और वर्तमान परिस्थितियों में यह विश्व के लिए कितना लाभकारी है’ विषय पर अपने विचार रखे।

☸️ उन्होंने कहा, “मैं बुद्ध धर्म को प्राथमिकता देता हूं, क्योंकि यह एक साथ संयुक्त रूप से तीन सिद्धांत प्रतिपादित करता है, जो कोई भी अन्य धर्म नहीं करता। अन्य सभी धर्म ईश्वर, आत्मा या मरणोपरांत जीवन की चिंता में लिप्त हैं। बुद्ध धम्म प्रज्ञा (अंधविश्वास और दैवी चमत्कार के विरुद्ध समझ) की शिक्षा देता है। यह करुणा की शिक्षा देता है। यह समता की शिक्षा देता है। इस धरती पर कुशल व सुखी जीवन के लिए मनुष्य को यही चाहिए। बुद्ध धम्म की इन्हीं तीन शिक्षाओं से मुझे प्रेरणा मिली। इन्हीं शिक्षाओं से पूरी दुनिया को प्रेरित होना चाहिए। समाज को न तो ईश्वर और न आत्मा ही बचा सकती है।”

☸️ ‘बुद्ध धम्म विश्व के लिए वर्तमान परिस्थितियों में कितना उपयोगी’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “एक तीसरा विचार भी है, जिससे पूरी दुनिया विशेषकर इसके दक्षिण-पूर्वी हिस्से को आकर्षित होना चाहिए। दुनिया कार्ल मार्क्स और साम्यवाद, जिसके कि वह जनक हैं, के जोरदार आक्रमण से आविद्ध हो चुकी है। यह एक गंभीर चुनौती व मार्क्सवादी व कम्युनिस्ट धर्मनिरपेक्षता से संबंधित हैं और उन्होंने सभी देशों की धार्मिक व्यवस्था की नींव हिला दी है। यह बिलकुल स्वाभाविक है कि धार्मिक व्यवस्था जो आजकल धर्मनिरपेक्षता से संबंधित नहीं रह गई है, एक आधार है, जिस पर वह सब कुछ, जो धर्मनिरपेक्ष है, निर्भर करता है। धर्मनिरपेक्षता बहुत दिनों तक नहीं चल सकती, जब तक कि उसे धार्मिक मान्यता न मिल जाए, भले ही उसके तार कितनी ही दूर से क्यों न जुड़े हों।

😡 “मुझे यह देखकर कि दक्षिण-पूर्वी एशिया के बौद्ध देशों के विचार कम्युनिज्म की ओर मुड़े हैं, असीम आश्चर्य होता है। इसका अर्थ है कि वे यह जान ही नहीं रहे कि बुद्ध धर्म है क्या ?” उन्होंने दावा किया कि बुद्ध धर्म ही कार्ल मार्क्स और उनके साम्यवाद का सटीक उत्तर है। रूसी ढंग के साम्यवाद का उद्देश्य है, खूनी क्रांति से इसे लागू करना। बौद्ध साम्यवाद यही परिवर्तन रक्तपातहीन मानसिक क्रांति से ला सकता है। जो लोग साम्यवाद अंगीकार करने के लिए आतुर हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि ‘संघ’ एक साम्यवादी संस्था है, किसी की निजी संपत्ति नहीं। यह हिंसात्मक ढंग से लागू नहीं हुआ है। यह मानसिक परिवर्तन का परिणाम है और फिर भी 2500 वर्षों से चला आ रहा है। इसका क्षरण हो सकता है, पर इसके आदर्श आज भी एक को दूसरे से जोड़ते हैं। रूसी साम्यवाद को इस प्रश्न का उत्तर अवश्य देना चाहिए। उन्हें दो अन्य प्रश्नों के भी उत्तर देने चाहिएं। एक तो यह कि साम्यवाद की हमेशा के लिए क्या आवश्यकता है ? इसे स्वीकार किया जा सकता है कि उन्होंने ऐसा काम किया है, जिसे करने में रूसी लोग कभी भी समर्थ नहीं थे, पर जब कार्य हो चुका, तो लोगों को प्रेमपूर्ण स्वतंत्रता क्यों नहीं मिलनी चाहिए, जैसे कि बुद्ध ने संदेश दिया था। इस कारण दक्षिण-पूर्व देशों को रूसी जाल में कूदने से पहले जरूर सावधान हो जाना चाहिए। इसमें से वे कभी भी निकल नहीं पाएंगे। उनके लिए कुल मिलाकर आवश्क यह है कि वे बुद्ध का अध्ययन करें। उन्होंने क्या उपदेश दिए, इसे ठीक-ठीक समझें और उनकी शिक्षाओं को राजनीतिक स्वरूप दें। निर्धनता है और हमेशा रहेगी। यहां तक कि रूस में भी गरीबी हैं, पर निर्धनता मानवीय स्वतंत्रता की बलि चढ़ा देने का बहाना नहीं हो सकती।

🗣️ उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से बुद्ध की शिक्षाओं की ठीक ढंग से व्याख्या नहीं की गई और न ही ठीक से उन्हें समझा गया। उनके वचन सामाजिक सुधार संबंधी सिद्धांतों के संग्रह हैं। इसे पूरी तरह समझा जा चुका है। एक बार यदि यह समझ लिया जाए कि बौद्धमत वास्तव में ‘सामाजिक उपदेश’ है, तो इसका पुनर्जीवन सदा के लिए हो जाएगा, क्योंकि तब दुनिया महसूस करेगी कि बुद्ध धर्म प्रत्येक व्यक्ति को इतना आकर्षक क्यों लगता है।”

संदर्भ पुस्तक: डॉ. आंबेडकर के अंतिम कुछ वर्ष (95-96)
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🅰️🅿️
:- ए पी सिंह निरिस्सरो
जय भीम जय भारत जय संविधान

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