मूकनायक /देश
राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा
पूना पैकेट – ‘धिक्कार दिवस’ कार्यक्रम के संबंध में, जो 24 अगस्त को पूना शहर (महाराष्ट्र) से साहेब के नेतृत्व में शुरू हुआ और 24 सितंबर, 1982 को जालंधर के बूटा मंडी क्षेत्र के पास समाप्त हुआ। यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने 24 सितंबर 1982 को पूना की यरवदा जेल में ‘पूना पैक्ट’ की स्वर्ण जयंती मनाने की गुप्त रूप से एक साल पहले ही तैयारी कर ली थी और मोहन दास ने भी इसकी तैयारी कर ली थी यरवदा जेल में सोने की मूर्तियाँ स्थापित कीं जब साहेब को अपनी खूफीआ तंत्र से जानकारी मिली तो उन्होंने सोचा कि ‘पूना पैक्ट’ का असली लाभ कांग्रेस में बैठे लोगों को हुआ है, यानी कांग्रेस का जश्न मनाना ठीक है, लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद बहुजन समाज के लोगों को क्या करना चाहिए? 24 सितंबर 1982 से शुरू होकर 24 अक्टूबर 1982 तक पूरा महीना जलंधर में खत्म हुआ। परिणाम यह हुआ कि उपरोक्त कार्यक्रम के मद्देनजर इंदिरा गांधी की सरकार ने अपना स्वर्ण जयंती रक्षा कार्यक्रम रद्द कर दिया। इसी कार्यक्रम से संबंधित जब 20 अगस्त को दिल्ली के आसपास भरतपुर, कोटला, फ़रीदाबाद, आगरा आदि क्षेत्रों से साइकिल रैली का कारवां बोट क्लब दिल्ली पर रूप चंद सेठ (जो गुजरात और दिल्ली के प्रभारी थे) की देखरेख में पहुंचा। बामसेफ) साहेब ने कहा कितनी साइकिलें हैं? तो रूपचंद का जवाब था कि बाबू जी 200 साइकिल तो साहेब ने व्यंग्यात्मक अंदाज में जवाब देते हुए कहा, “क्या?” क्या आप अपनी 200 साइकिल से करांती करना चाहते हैं? ठीक 10 मार्च 1983 को साहेब ने रूप चंद सेठ को आदेश दिया और कहा कि उस व्यक्ति (उमराव सिंह) से पूछो, जो अपने कार्यक्रम में बामसेफ की झक्की के साथ टेम्पो में चलता है, वह हमारे साथ दिल्ली से बाहर जाने के लिए कितने पैसे लेगा। रूपचंद ने सवालिया लहजे में साहेब से पूछा और कहा कि साहेब जी बताएं क्या प्रोग्राम है? पूछने पर भी साहेब ने कुछ नहीं बताया। हारकर रूपचंद उमराव सिंह के पास गये और साहेब का सन्देश सुनाया। फिर उसने भी वही सवाल पूछा कि कहां जाना है? मुझे ये पता था लेकिन साहेब ने कहा कि दिल्ली से बाहर जाना है। उमराव सिंह ने दो सौ रुपये प्रतिदिन और पांच हजार एडवांस मांगे। लेकिन उस समय संस्था के पास पैसों की बहुत कमी थी। आनन-फ़ानन में रूपचंद ने बैंक से कर्ज़ लिया (वे बैंक अधिकारी थे) और उमराव सिंह को पाँच हज़ार की अग्रिम राशि दे दी। अगले कुछ दिनों में, साहेब ने बैठकें करके 10 हजार रुपये और एकत्र किए और 13 मार्च को, साहेब रूपचंद को अपने साथ आजाद मार्केट से सिमायाना, खाना पकाने के बड़े बर्तन और पैन खरीदने के लिए ले गए। उन्होंने पतीले, गिलास, चम्मच आदि भी खरीदे बाल्टियाँ। फिर भी साहेब ने रूपचंद को नहीं बताया कि कहाँ जाना है और क्या प्रोग्राम है? 14 तारीख की शाम को साहेब ने रूप चंद को सुबह साइकिल लेकर गांधी जी की समाधि पर पहुंचने का आदेश दिया। साथ ही अपने टेम्पू वाले को भी आने को कहो। रूपचंद हैरान है कि सुबह कहां जाए। पहले ”दो पैर दो पहिया का कमाल” साइकिल रैली अंबेडकर स्टेडियम से शुरू होनी थी, लेकिन वहां मैच होने के कारण कार्यक्रम स्थल बदलना पड़ा। हजारों की संख्या में लोग अपनी-अपनी साइकिलें लेकर पहुंचे थे। रैली शुरू होने से पहले वामन मेश्राम मिठाई लेकर पहुंचे, क्योंकि उस दिन साहेब का 49वां जन्मदिन था। यह साइकिल रैली सात राज्यों दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और जम्मू कश्मीर में 3300 किमी (3000 किमी साइकिल मार्च और 300 किमी पैदल मार्च) की यात्रा है, जो फरीदाबाद की तरह अलग-अलग जगहों पर अपनी विचारधारा फैला रही है , कोसीकावन, मथुरा, आगरा, एत्मादपुर, फिरोजाबाद, एटा, कासगंज, अलीगढ, खुजारा, गाजियाबाद, वह मेरठ, मुजफ्फरपुर, सहारनपुर, नारायणगढ़, पंजौर, नंगल, ऊना, पठानकोट, वादी ब्राह्मण, जम्मू, आरएस पुरा, सांभा, कठुआ, दसूहा, टांडा, शामचुरासी, होशियारपुर, गढ़शंकर, रोपड़, मोहाली, चंडीगढ़, क्रुक्षेत्र और पानीपत आईं 22 अप्रैल को फिर दिल्ली लौटेंगे। साहेब के नेतृत्व में और DS4 के बैनर तले यह एक ऐतिहासिक रैली थी, जिसने उत्तर भारत में राजनीति के बड़े-बड़े स्तंभों की चूलें हिला दीं। इस साइकिल रैली की वजह से पंजाब के नंगल शहर में दो दिनों तक ट्रैफिक जाम रहा।
मार्क्स का सिद्धांत केवल आर्थिक है, सामाजिक नहीं। इसमें इस देश की सामाजिक व्यवस्था का स्वरूप नहीं है। भारत में जाति एक बहुत बड़ा फैक्टर है। वर्ग भेदभाव समान नहीं है। दरअसल, जाति ‘वर्ग’ नहीं बनने देती और लोगों को एक साथ आने भी नहीं देती – साहेब श्री कांशीराम।
प्रस्तुत करते है।
इंजीनियर तेजपाल सिंह
94177-94756
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मैं कांशीराम बोलता हूं।
लेखक-पम्मी लालो मजारा (बंगा नवांशहर)। 95011-43755