मूकनायक/ देश
राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा
(1) अपनी दासता को स्वयं मिटाना है। शिक्षा, संघर्ष, संगठन इसके मूलमंत्र हैं।
(2) स्वतंत्रता व मानवाधिकार किसी को उपहार में नहीं मिलते, उनके लिए संघर्ष किया जाता है।
(3) गुलाम को अहसास करा दो कि वह गुलाम है, बगावत कर देगा।
(4) शेर बनो बकरी नहीं शेर की कोई बलि नहीं चढ़ाता।
(5) अपने अन्दर की सुसुप्त ज्वाला को बुझने न दीजिये। संघर्ष जारी रखिए।
(6) संघर्ष करो और अधिक संघर्ष करो त्याग करो अधिक त्याग करो यही मेरा अन्तिम सन्देश है।
(7) दासता की लम्बी जिन्दगी से कुछ पलों का जीवन कहीं अच्छा है।
(8) संसार में बड़ी उपलब्धियाँ कठिन संघर्ष के बिना प्राप्त नहीं की जा सकती।
(9) जीवन को घसीटना और कौए की भाँति हजारों वर्ष जीते रहना इस संसार में जीना एकमात्र ढंग नहीं है। फलहीन वृक्ष की भांति बेकार जीते रहने से किसी बड़े मंतव्य और उद्देश्य के लिए
अपने मरे यौवन में आत्मोत्सर्ग कर देना कहीं अच्छा है।
(10) कठिन और तीव्र संघर्ष से ही शक्ति विश्वास और आदर प्राप्त होता है।
(11) हमारे आन्दोलन का लक्ष्य है अत्याचार अन्याय और झूठी परम्पराओं के विरुद्ध संघर्ष करना और उच्च वर्ग के हर प्रकार के विशेषाधिकार समाप्त करके निर्धन जनता की पराधीनता की बेड़ियां तोड़ना ।
(12) हमारी लड़ाई न धन-दौलत के लिए और न ताकत प्राप्त करने के लिए, केवल हमारी लड़ाई स्वतंत्रता के लिए है। यह लड़ाई दबे हुए व्यक्तित्व को फिर से जीवित करने की लड़ाई है।
(13) में इस कारवाँ को बड़ी मुसीबतों से यहाँ तक लाया हूँ। यदि मेरे अनुयायी इसे आगे न ले जा सकें तो किसी भी कीमत पर इसे पीछे न जाने दें।
(14) अछूतों को अपनी करनी और कथनी में योद्धा जैसा व्यवहार करना चाहिए और प्रत्येक स्थानों पर अपने मानवीय अधिकार प्राप्त करने के लिए बल प्रयोग करना चाहिए।
(15) यदि आप एक सम्मानजनक जीवन व्यतीत करना चाहते हो तो आप अपनी मदद स्वयं करों के सिद्धान्त में विश्वास करो।
(16) सफलता मिले या न मिले कर्तव्य करते जाओ, लोग हमारे काम की प्रशंसा करे या न करे, काम में जुटे रहो। जब यह साबित हो जायेगा कि हमारे उद्देश्य अच्छे हैं। उस समय हमारे विरोधी भी हमारे समर्थक बन जायेगें।
(17) में अपने आलोचकों को यह बता देना चाहता हूँ कि मैं अपनी घृणा को एक वास्तविक शक्ति मानता हूँ। इसलिए यह प्रणा उस असीमित प्रेम का सबूत है जो में अपने उन उद्देश्यों के लिए मन में रखता हूँ जिस पर में विश्वास करता हूँ में इसके लिए शर्म महसूस नहीं करता।
💎💎 बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के सामाजिक विचार विन्यास
(1) यदि आप पूछते हैं तो मेरा आदर्श समाज वह होगा जो स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व पर आधारित हो।
(2) जाति विहीन, वर्ग विहीन समाज की स्थापना के बिना स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।
(3) जिस प्रकार पानी की बूंद सागर में डाल देने से उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वैसे ही मनुष्य का केवल समाज में रहने के कारण उसके अस्तित्व का लोप नहीं हो सकता उसका एक स्वतंत्र जीवन है, स्वतंत्र अस्तित्व है, आत्मविश्वास, आत्मोन्नित के लिए है इसी एक कारण से एक आदमी द्वारा दूसरे आदमी को गुलाम बनाकर रखने का कोई अधिकार नहीं है।
(4) मेरी दृष्टि में व्यक्ति के विकास के लिए सहानभूति, समता और स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है।
(5) प्रजातंत्र संगठित रूप से रहन-सहन का ढंग है, यह अनिवार्यतः अपने साथ रहने वाले मनुष्यों के प्रति सम्मान प्रकट करने का ढंग है।
(6) हमारा कर्तव्य है कि हम प्रजातंत्र को जीवन सम्बन्धों के मुख्य सिद्धान्त के रूप में समाप्त होता हुआ न देखें। हम प्रजातंत्र में विश्वास करते हैं तो हमें उसके प्रति सच्चा व वफादार होना चाहिए।
(7) असमानता को शीघ्र दूर करने का प्रयास करना चाहिए वरना असमानता के शिकार इस राजनैतिक प्रजातंत्र के उस महल को पलीता लगा देगें जिसका निमार्ण बड़े परिश्रम से किया गया है।
(8) दलित समाज कि प्रगति में बाधक कोई भी संस्था या व्यक्ति हो, वह चाहे दलित समाज का हो या स्वर्ण हिन्दु समाज का, उसका तीव्र निषेध होना चाहिए।
(9) किसी सम्प्रदाय का संख्या में अधिक होना जरूरी नहीं है, उसके लिए सदा संघर्षशील, संगठित, चिन्तक, शक्तिशाली, पढ़े लिखे, स्वाभिमानी और सफलता को कायम रखने योग्य भी होने चाहिए।
(10) औरतों को पराधीन बने रहने से इन्कार करना चाहिए।
(11) बच्चों में यह भावना भर दो कि वह इस संसार में महान बनने के लिए आये हैं, उनके मन में छोटे बनने के सभी विचार दूर करो।
(12) विवाह आदि के लिए उतावले मत हो जाओ, शादी तो एक बोझ है। अधिक सन्तान पैदा करना एक प्रकार का भयानक अपराध है।
(13) अपने पति, पुत्रों और सम्बंधियों को यदि वे शराबी हों तो उन्हें भोजन न दो, अपने बच्चों को स्कूल भेजो। शिक्षा महिलाओं के लिए अनिवार्य है यदि आप पढ़ लिख गये तो बहुत उन्नति हो सकती है।
(14) मुझे साहित्यकारों से अपनी शक्ति लगाकर कहना है कि लेखनी का प्रकाश अपने आँगन में ही न रोक लें उसका तेज गाँव-गाँव के गहन अंधकार को दूर करने के लिए फैला दें।
(15) मनुष्य यदि जीवित रहता है तो उसे समाज की उन्नत के लिए जीवित रहना चाहिए।
💎💎 बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के धार्मिक एंव आध्यात्मिक विचार विन्यास
(1) धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए वह धर्म जो समाज में विघटन तथा भेद-भाव पैदा करता हो वह धर्म नहीं संकुचित पंथ हो सकता है। सच्चा धर्म वह है जो बौद्धिक, नैतिक आध्यात्मिक हो। नैतिकता धर्म का आधार है। धर्म सदाचार है जिसका अर्थ है जीवन के सभी क्षेत्रों में मानव मानव के बीच शुभ सम्बन्ध।
(2) में मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता। में मूर्ति पूजा तोड़ने में विश्वास रखता हूँ।
(3) में धर्म चाहता हूँ धर्म के नाम पर पाखण्ड नहीं।
(4) धर्म नैतिकता है और जिस प्रकार धर्म पवित्र है उसी प्रकार नैतिकता पवित्र है। समाज से पृथक नैतिकता का कोई मूल्य नहीं है। नैतिकता नितांत मानव केन्द्रित होती है।
(5) धर्म में नैतिकता, बौद्धिकता, स्वतंत्रता, समानता व बन्धुत्व भाव आदि प्रधान तत्व होने चाहिए। जिससे आदमी-आदमी के बीच मनुष्यत्व की स्थापना हो सके।
(6) मैंने बौद्ध धर्म इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इसमें ऐसे तीन मिश्रित सिद्धान्त हैं जो किसी धर्म में नहीं पाये जाते हैं। बौद्ध धर्म प्रज्ञा, करुणा और समता का पाठ पढ़ाता है। इससे ही मनुष्य जीवन अच्छा और सुखी होता है।
(7) बौद्ध धर्म कार्लमार्क्स और साम्यवाद का उचित उत्तर हो सकता है।
(8) साम्यवादी सफलता के प्रलोभन में मत आओ, मुझे पूरा विश्वास है यदि हम दस में से एक तथागत की भाँति प्रबुद्ध बन जाये तो हम प्रेम, न्याय और शुभ संकलप की पद्धतियों के माध्यम से बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
(9) धर्मांतरण के शिवाय हमारे उद्धार का कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
(10) भिक्षु संघ को अपना दृष्टिकोण बदलना चाहिए और भिक्षुओं को सन्यासी जीवन व्यतीत करते रहने की अपेक्षा ईसाई मिशनरियों की भांति सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रचारकों एवं उपदेशकों की भांति काम करना चाहिए।
(11) वेदों में मूर्खता के अलावा कुछ नहीं है और गीता एक शरारत पूर्ण पुस्तक है।
(12) वेदशास्त्र, रामायण, महाभारत और हिन्दुओं की दूसरी धार्मिक पुस्तकों जैसी खराब पुस्तकें संसार में कहीं नहीं बनी, परन्तु मैं संसार के सामने उनका भेद अवश्य खोलूँगा।
(13) हिन्दू समाज एक गुम्बद है जो है तो कई मन्जिल का लेकिन उसमें न तो कोई सीढ़ी है और न ही कोई दरवाजा जो जिस मंजिल में पैदा हुआ वह उसी में मर जायेगा।
(14) मनुष्य की मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति होनी चाहिए। मनुष्यों व पशुओं में बढ़ा अन्तर है। पशुओं को केवल चारे की आवश्यकता होती है। मनुष्य के साथ मन अर्थात बुद्धि भी है जिसका विकास और परिमार्जन होना चाहिए। स्वतंत्र चिन्तन पर रोक लगाने से व्यक्तित्व की हत्या होती है। तानाशाही से जनता का बौद्धिक विकास रूक जाता है।
💎💎 बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के शैक्षिक – विचार विन्यास
(1) ज्ञान पवित्र है तथा बहुत बड़ी शक्ति है।
(2) अध्ययन मेरा पहला प्यार है तथा राजनीति दूसरा।
(3) शिक्षा ऐसी वस्तु है जो प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचनी चाहिए।
(4) आप अपने बच्चों को शिक्षा दीजिए और उनमें महत्वाकांक्षा उत्पन्न कीजिए ऐसा करके अपने लिए भी गौरव व सम्मान प्राप्त कर सकते हैं।
(5) ज्ञान हर एक मनुष्य के जीवन की बुनियाद है।
(6) विद्या एक तलवार है।
(7) नम्रता और सदाचार से हीन मनुष्य एक जंगली दरिदें से भी भयानक है। यदि एक पढ़े लिखे मनुष्य की शिक्षा गरीब जनता की भलाई के लिए रुकावट है तो ऐसा शिक्षित मनुष्य समाज के लिए कलंक है। धिक्कार है ऐसे पढ़े लिखे मनुष्य पर।
(8) यदि हम लड़को के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दें तो और भी जल्दी प्रगति कर सकते हैं।
💎💎 बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के आर्थिक विचार विन्यास
(1) आज़ादी प्राप्त होने पर मुसलमानों को पाकिस्तान मिला हिन्दुओं को भारत मिला परन्तु अछूतों को केवल आरक्षण मिला।
(2) हर इतवार को संविधान संशोधन करने के बजाए एक ही संशोधन किया जाए कि पूरी परती जमीन भूमिहीनों में बाँट दी जाए।
(3) बलवान ही जिन्दा रहता है इसे मैं नहीं मानता। क्या किसी को इसलिए अयोग्य मान लिया जाए कि वह कमजोर है, यह नियम तो मछलियों में लागू होता है।
(4) सर्वोच्च व्यक्ति सवणों में ही क्यों मिलता है? यह सर्वोत्तम व्यक्ति शासक वर्ग के लिए सर्वोत्तम हो सकता है परन्तु दलितों के दृष्टि से नहीं हो सकता। एक सर्वोत्तम जर्मन या ग्रीक, फांसीसी या तुर्क के लिए सर्वोत्तम कैसे हो सकता है ?
(5) मेरे ख्याल से मजदूरों के दो दुश्मन हैं ब्राहमणवाद और पूंजीवाद।
💎💎 बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के राजनैतिक विचार विन्यास
(1) कानून सभी सांसारिक खुशियों का स्रोत है, तुम कानून बनाने वाली ताकत पर कब्जा करो।
(2) मैं आपके मन में बसाना चाहता हूँ कि आपकी पार्टी ही आपको बचा सकती है। पार्टी को अच्छा नेता चाहिए उसे राजनैतिक प्लेटफार्म चाहिए।
(3) आपके दुख दर्दों को कोई दूर नहीं कर सकता जब तक शासन सत्ता आपके हाथों में नहीं आ जाती।
(4) तुम्हें शासक वर्ग बनकर स्वयं रक्षा करनी चाहिए।
(5) अगर कोई राजा तुम्हें अपने महल में बुलाता है तो खुशी से जाओ लेकिन अपनी झोपड़ी जलाकर नहीं किसी दिन तुम्हारा राजा से झगड़ा हो गया और उसने तुम्हें महल से निकाल दिया तो कहाँ रहोगे ?
(6) यदि कोई संस्था तुम्हें खरीदती है तो बिक जाओ लेकिन अपनी संस्था का विघटन करके नहीं।
(7) मुझे अन्य लोगों से कोई खतरा नहीं मुझे अपनों से अधिक खतरा है।
(8) अधिकारों के लिए लड़ो कुर्सी के लिए नहीं, अपने मतभेदों को भूल जाओ और संगठित हो जाओ।
(9) सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक समानता हेतु सत्ता के मन्दिर पर कब्जा करो।
(10) इसमें कोई संदेह नहीं कि काँग्रेस (अब बीजेपी भी) हिन्दु पूँजीपतियों द्वारा समर्थित एक संगठन है। जिसका लक्ष्य भारतीयों को स्वतंत्र करना नहीं है बल्कि ब्रिटिश नियंत्रण से मुक्त होना है ताकि सत्ता के उन स्थानों पर आधिपत्य हो जायें जिन पर अब अंग्रेज बैठे थे।
(11) तुम्हारी दिलचस्पी हमें गुलाम बनाये रखने में है लेकिन हमारी दिलचस्पी गुलाम बने रहने में कतई नहीं है, इसलिए हम गुलामी करने से इन्कार करते हैं।
(12) दूसरे दलों में तुम्हारी स्थित उस पूँछ के समान है जो लम्बी तो बहुत हो सकती है परन्तु ताकतवर नहीं।
संदर्भ पुस्तक:
बाबा साहब के तीन उपदेश और उनका सही क्रम
प्रो. डॉ रामनाथ (कानपुर)
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:-ए पी सिंह निरिस्सरो
जय भीम जय भारत जय संविधान