Sunday, January 5, 2025
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अकेले केजरीवाल दे रहे हैं भाजपा को चुनौती

मूकनायक राजस्थान अजमेर हेमन्त कुमार जाटवा सराना

चुनावी वादों और घोषणाओं से भाजपा भी हैरान-परेशान

अरविंद केजरीवाल को चाहे कोई चालाक,पाखंडी,धूर्त,झांसेबाज या कुछ भी कहे, लेकिन इस बात में संदेह नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी और उसके थिंक टैंक को अगर देश में कोई नेता चुनौती दे रहा है तो वह केजरीवाल ही है। आम तौर पर यह कहा जाता है कि भाजपा के नेता, खास तौर पर नरेंद्र मोदी,अमित शाह और उसके रणनीतिकार वहां से सोचना शुरु करते हैं,जहां से विपक्षी नेताओं की सोच खत्म हो जाती है। लेकिन देश के करीब 22 राज्यों में सत्ता में होने और लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने के बावजूद भाजपा आधे राज्य दिल्ली में 11 साल से सत्ता से बाहर है और केजरीवाल अकेले उसका मुकाबला कर रहे हैं। केजरीवाल चुनाव से पहले जो मुद्दे ढूंढ के लाते हैं,वह भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं। नतीजतन,पूरी भाजपा उनके पीछे लगकर उनके वादों को छलावा साबित करने में जुट जाती है। लेकिन चुनावों में वादे तो भाजपा भी करती रही है। क्या नरेंद्र मोदी ने विदेशी बैंकों में जमा सारा काला धन वापस लाने और हर भारतीय के खाते में 15 लाख रूपए जमा कराने का वादा नहीं किया था? क्या हुआ इसका? खुद अमित शाह ने बाद माना था कि चुनावों में ऐसा कहा जाता है,पर होता थोड़ी है। यानि वादे चुनावी राजनीति और मतदाताओं को प्रभावित करने का सबसे बड़ा और कारगर हथियार है।* 
 *केजरीवाल को हिंदू विरोधी साबित करने में लगी भाजपा के लिए केजरीवाल ने पुजारी और ग्रंथी सम्मान योजना का वादा करके एक बार फिर चुनौती खड़ी कर दी है। भाजपा अब तक ये सवाल उठाती रही थी कि दिल्ली सरकार इमामों को वेतन दे रही है, तो पुजारियों को क्यों नहीं? ऐसे में केजरीवाल का उसे ये जवाब है। केजरीवाल ने ऐलान किया है कि अगर आप फिर सत्ता में आई तो वह दिल्ली के मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18000 रुपए महीना वेतन देगी। जाहिर है इससे हिंदुओं की सबसे बड़ी सरपरस्त पार्टी भाजपा के लिए यह चुनौती खड़ी हो गई है कि इस वादे  का क्या तोड़ लाए। आप ने इसके लिए पुजारी और ग्रंथियों का रजिस्ट्रेशन भी करना शुरू कर दिया है। जबकि हकीकत ये भी है कि खुद उसे पता नहीं है कि दिल्ली में कितने मंदिर और पुजारी है और किस तरह के मंदिर के पुजारी पेंशन के हकदार होंगे। लेकिन इससे उसने खुद को हिंदुओं के हित में खड़ा होना बताया है। केजरीवाल चुनौती दे रहे हैं कि अगर भाजपा में हिम्मत है,तो वह अपने सत्ता वाले राज्यों में ये योजना लागू करके दिखाएं। भाजपा के साथ संकट ये भी है कि जिस तरह से केजरीवाल की महिला सम्मान योजना में महिलाओं को 21सौ  देने और 60 साल तक के बुजुर्गों का मुफ्त इलाज करने की संजीवनी योजना का दिल्ली सरकार में उनके मंत्रालयों ने ही खंडन कर दिया और राज्यपाल से इसकी जांच शुरू करा दी,वैसा राज्यपाल पुजारी और ग्रंथियां के वेतन के वादे पर नहीं कर सकते हैं। आप सरकार और केजरीवाल की राज्यपालों से तल्ख़ियां हर कोई जानता है और यह भी किसी से छुपा नहीं है कि राज्यपाल किसके इशारे पर केंद्र शासित प्रदेशों में काम करते हैं। इसीलिए केजरीवाल ये भी कह रहे हैं कि अगर इसे रोकने की कोशिश की, तो भाजपा को बहुत पाप लगेगा। केजरीवाल की घोषणा पर कुछ पुजारी और भाजपा नेता  कह रहे हैं कि 10 साल तक वह तुष्टीकरण की राजनीति के तहत मस्जिद के मौलानाओं और मौलवियों को वेतन देते रहे और अब चुनावों के कारण उन्हें पुजारियों की याद आई है। यही तो उनकी राजनीतिक चतुराई है। दरअसल,कांग्रेस के दिल्ली चुनाव में खुलकर मैदान में आ जाने से केजरीवाल को मुस्लिम और दलित वोट बैंक के खिसकने का खतरा नजर आ रहा है। इसकी भरपाई वह हिंदू वोटों से करना चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने यह सम्मान योजना का ऐलान किया है।* 
*अखिल भारतीय मंदिर परिषद ने केजरीवाल की इस घोषणा का स्वागत किया है। परिषद के राष्ट्रीय महासचिव महंत रोहित शर्मा ने कहा की क्या ही अच्छा होता कि हिंदू और सनातन की बात करने वाली भाजपा केजरीवाल की तरह ही उनसे भी ज्यादा वेतन देने की घोषणा करती। उन्होंने कहा कि भाजपा- कांग्रेस भले ही केजरीवाल पर और उनकी नीयत पर राजनीति करते रहे, लेकिन पुजारी व ग्रंथियां की हित में इस घोषणा का विरोध ना करें। शर्मा का ये बयान भाजपा नेता प्रवेश वर्मा के उस बयान के बाद आया जिसमें वर्मा ने कहा था कि पुजारी और ग्रंथियों को शराब घोटाले के पैसे पर हाथ भी नहीं लगना चाहिए। विडंबना ये है कि केजरीवाल ने उस समय पुजारी-ग्रंथी सम्मान योजना की घोषणा की है,जब दिल्ली वक्फ बोर्ड से जुड़े मौलानाओं और  इमामों को दिल्ली सरकार 17 महीने से बकाया वेतन नहीं दे रही है। वेतन के लिए उन्होंने प्रदर्शन भी किया है। केजरीवाल को पिछले कुछ सालों में मुफ्त यानि रेवड़ी की राजनीति करने का विशेषज्ञ भी माना जा सकता है। उन्होंने दिल्ली की जनता को मुफ्त पानी,बिजली सहित ऐसी कई सुविधाएं दी, जिसके कारण बीजेपी उन्हें दिल्ली में पराजित नहीं कर पा रही है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा नेता फ्री बीज की राजनीति का विरोध करते हैं। लेकिन  खुद भाजपा विभिन्न राज्यों के चुनाव में ऐसी ही घोषणाएं करती है। यानी सत्ता की मंजिल पाने के लिए रास्ता सभी एक जैसा अपनाते हैं। लेकिन पहले उस पर जो आगे बढ़ जाता है, पीछे रहने वाला उसे खींचना चाहता है। लगता है तमाम आलोचना, विवादों और आरोपों के बाद भी केजरीवाल वादों और भाजपा के शब्दों में झांसों की राजनीति के विशेषज्ञ बन चुके हैं।*
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