मूकनायक/देश
राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा
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हम गहराई से देखें तो मनुष्य में यदि उच्च पद, योग्यता, आवश्यकता से अधिक धन, ऐश्वर्य और सुंदरता जैसी कोई विशेषता आ जाए तो वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लग जाता है, उसमें श्रेष्ठता का अभिमान आ जाता है । ऐसी अवस्था में वह भरपूर इच्छा रखता है कि श्रेष्ठ समझते हुए सभी लोग उसका आदर सत्कार करें । ऐसा ना होने पर वह दुखी होकर अपने आपको अपमानित महसूस करता है ।
यहां यह गौर का विषय है कि उच्च पद, धन, ऐश्वर्य, सुंदरता आदि कोई स्थाई नहीं हैं । मात्र श्रेष्ठ होने के इस दोष को छोड़ने से ही मानव के अहंकार, क्रोध एवं नकारात्मक रूपी अन्य दोष स्वत: ही समाप्त होने शुरू हो जाते हैं क्योंकि संस्कारी और सकारात्मक सोच का व्यक्ति हमेशा मधुरता के साथ ही सभी से सद्व्यवहार करता है।
लेखक
बिरदी चंद गोठवाल, नारनौल
प्रदेश प्रभारी मूकनायक, हरियाणा