मूकनायक
देश
राष्ट्रीय प्रभारी ओमप्रकाश वर्मा
✍✍
जीवन-मरण की दिनचर्या में अधिकतर लोग जादू-टोना, अंधविश्वास, आडम्बर, पाखंडवाद व शुभ मुहूर्त के चक्र में फंसकर कड़ी मेहनत से कमाए हुए धन का अनावश्यक अपव्यय कर देते हैं जो परिवार की बर्बादी के साथ साथ शांति व्यवस्था में भी बाधक है, जबकि मृत्यु एक दिन निश्चित है क्योंकि मृत्यु इस सृष्टि का नियम है । मृत्यु का नाम सुनते ही हर प्राणी भयभीत हो जाता है । अगर मृत्यु ना होती तो हमें जीवन जीने के महत्व का आभास भी ना होता ।
मृत्यु मनुष्य को सजग रहने और विवेकी बनने की प्रेरणा प्रदान करती है, परंतु सांसारिक भोग हमें मृत्यु के वास्तविक अर्थ को समझने में बाधा उत्पन्न करता है और हमारी विरासत भी हमें यही शिक्षा देती है कि मनुष्य के लिए संतुष्ट, तनावमुक्त व प्रसन्नचित रहकर अपने उज्जवल भविष्य व सुखमय जीवन के लिए सत्कर्म करने में प्रयत्नशील रहना ही हितकारी है क्योंकि मृत्यु एक चेतावनी है जो मनुष्य को भोग विलास और पाप के मार्ग पर बढ़ने से रोकती है और यही जीवन मरण का चक्र व सृष्टि की व्यवस्था है ।
लेखक
बिरदी चंद गोठवाल, नारनौल
प्रदेश प्रभारी मूकनायक, हरियाणा